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समर-यात्रा
 


को आदमी बनाया। हम अपना धर्म छोड़ बैठे, उसी का फल है कि आज हम गुलाम हैं , लेकिन अब हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का फैसला कर लिया है और... एकाएक थानेदार और चार-पांच कांस्टेबल आ खड़े हुए। थानेदार ने चौधरी से पूछा-यह लोग तुमको धमका रहे हैं ? चौधरी ने खड़े होकर कहा-नहीं हुजूर, यह तो हमें समझा रहे हैं। कैसे प्रेम से समझा रहे हैं कि वाह ! थानेदार ने जयराम से कहा-अगर यहाँ फसाद हो जाय, तो आप ज़िम्मेदार होंगे ?

जयराम-मैं उस वक्त तक ज़िम्मेदार हूँ, जब तक आप न रहें।

'आपका मतलब है कि मैं फसाद कराने आया हूँ।'

'मैं यह नहीं कहता; लेकिन आप आये हैं, तो अंग्रेजी साम्राज्य की अतुल शक्ति का परिचय जरूर ही दीजिएगा। जनता में उत्तेजना फैलेगी। तब आप पिले पड़ेंगे और दस-बीस आदमियों को मार गिरायेंगे। यही सब जगह होता है और यहाँ भी होगा।

सब इन्स्पेक्टर ने ओंठ दबा कर कहा--मैं आपसे कहता हूँ, यहां से चले जाइए, वरना मुझे जाबते की कार्रवाई करनी पड़ेगी।

जयराम ने अविचल भाव से कहा-और मैं आप से कहता हूँ कि आर मुझे अपना काम करने दीजिए। मेरे बहुत से भाई यहाँ जमा हैं और मुझे उनसे बात-चीत करने का उतना ही हक़ है जितना आपको।

इस वक्त तक सैकड़ों दर्शक जमा हो गये थे। दारोगा ने अफ़सरों से पूछे बगैर और कोई कार्रवाई करना उचित न समझा। अकड़ते हुए दूकान पर गये और कुसी पर पांव रखकर बोले-..ये लोग तो माननेवाले नहीं हैं।

दुकानदार ने गिड़गिड़ा कर कहा-हुजूर, मेरी तो बधिया बैठ जायगी !

दारोगा-दो-चार गुण्डे बुलाकर भगा क्यों नहीं देते ? मैं कुछ न बोलूंगा। हो, जरा एक बोतल अच्छी-सी भेज देना। कल न-जाने क्या भेज दिया, कुछ मज़ा ही नहीं पाया।

थानेदार चला गया, तो चौधरी ने अपने साथी से कहा-देखा कल्लू,