पृष्ठ:समाजवाद पूंजीवाद.djvu/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११७
पूँजी के अत्याचार

दूंजी के अत्याचार अधिकार बलपूर्वक शंगरेज़ी से ले लिया। अाज भारतवर्ष को अपनी स्वाधीनता के लिए पूंजीवाद से ही संघर्ष करना पड़ रहा है। इंग्लैण्ड श्रादि देशों में कभी पिन बनाने वाले कारीगर बाज़ार से आवश्यक सामग्री खरीद कर पिन बनाने की शुरू से लेकर पारवीर तक सर क्रियायें पूरी कर लेते थे, और बाज़ार में या वरों में जाकर उन्हें बेच भी श्राते थे। किन्तु पीछे जब उद्योगामे अर्थशास्त्र व्यक्तिगत जीवन के अनुसार विशेपीकरण हुआ तो उसी एक पिन के बनाने में शुरू से लेकर थानीर तक अवरह यादमी लगाये जाते थे। हरएक श्रादमी पिन बनाने के काम का एक खास हिस्सा ही करता था। फलतः उनमें से कोई भी पहिले के कारीगरों की तरह पूरी पिन नहीं बना सक्ता था, न उसके लिए सामग्री खरीद सकता था और न पिन तैयार होने पर उसे येच ही सकता यापिटतः वह पुराने कारीगरों की अपेक्षा कम योग्य और कम जानकारी रखने वाला होता था। किन्तु इसमें एक लाभ यह था कि एक काम का एक ही हिस्सा यारवार करते रहने से वह अपने काम को बड़ी जल्दी-जल्दी कर सकता था। अठारह भादमी मिलकर दिन भर में करीव ५ हजार पिन बना सकते थे। इस कारण वे उन्हें पहिले के कारीगरी की पिनों की अपेक्षा अधिक सस्ती और बहुतायत से दे सकते थे। किन्तु इस पद्धति का परिणाम यह हुया था कि योन्य श्रादमियों की योग्यता नष्ट हो गई थी और वे मशीनों की तरह से विना बुद्धि का उपयोग किये काम करते थे। जिस प्रकार ऍजिन को चलाने के लिए उसमें कोयला डाला जाता है वैसे उनसे काम कराने के लिए उनके पेटों को पूंजीपतियों के अतिरिक्त भोजन से भरा जाता था । इसीलिए गोल्डस्मिथ ने कहा था कि इस 'पद्धति से एक ओर तो धन-संग्रह होता है और दूसरी ओर मनुष्यों का नाश ।' ____ यान उन अठारह हाड़-मांस की मशीनों का स्थान लोहे की मशीनों ने ले लिया है जो लाखों पिर्ने तैयार करती हैं। पिनों को गुलाबी काग़ज़ में लगाने तक का काम मशीनें ही करती है। फलस्वरूप सिवा मशीनों