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समाजवाद:पूँजीवाद

१७६ . समाजवाद : पूजीवाद श्रतः यदि हम अज्ञानी वन कर समाजवाद के रास्ते पर चलेंगे तो राज्य-पूंजीवाद ( State Capitalism ) के समुद्र में ग़र्क हो जावेंगे । अवश्य ही राज्य-पूंजीवाद पूँजीवादी एकतंत्र (फासिज्म) द्वारा वर्तमान काल की कुछ भयंकर बुराइयों को नष्ट करके जनता को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगा, मज़दूरियाँ वदावेगा, मृत्यु-ौसत घटावेगा, योग्य स्त्री-पुरुषों के विकास का मार्ग खोलेगा, अव्यवस्था का दमन करेगा, किन्तु अार्थिक असमानता के अनर्थ के आगे उसकी कुछ न चलेगी । इसलिए यह अत्यन्त महत्व की बात है कि हम समाजवाद का वृद्धिपूर्वक अनुसरण करें और उसके उद्देश्य को अर्थात् प्राय के समान विभाजन को अपनी आँखों से कभी श्रोमल न होने दें। क्रान्ति वनाम वैध पद्धति हम इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि समाजवाद की स्थापना के लिए उद्योगों का राष्ट्रीयकरण आवश्यक है और उसके द्वारा ही राष्ट्रीय प्राय का समान विभाजन हो सकता है। किन्तु अब सवाल यह पैदा होता है कि जबतक राज्य-सत्ता पूँजीपतियों के पास से समाजवादियों के हाथ में न आ जाय, तबतक यह कैसे सम्भव होगा। यदि देश का शासन जनतन्त्रात्मक पद्धति पर होता है तो यह मानी हुई बात है कि चुनाव में जिस दल का वहुमत होगा, उसी के हाथ में राज्य-सत्ता होगी। यह विल्कुल सम्भव है कि धारा-सभा के किसी चुनाव में ऐसे लोगों का बहुमत हो जाय जो समाजवाद के पक्षपाती हो। इस पर यदि पूंजीपति चुप हो जाते हैं तो कोई वाधा उपस्थित न होगी; किन्तु यह हो सकता है पूंजीपति चुनाव के निर्णय को स्वीकार न करें और लड़ने के लिए कटिबद्ध हो जायें । उस दशा में सिवाय इसके और कोई उपाय नहीं रह जाता कि दोनों पक्ष खुले मैदान में अपनी-अपनी ताकत की आज़माइश करले ।