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समाजवाद : पूँजीवाद

समाजबाद : पूँजीवाद पाँच बच्चे हों तो उनका पालन-पोपण पचास हजार के हिसाब से होगा और वे वैसे ही समाज में प्रवेश करेंगे, किन्तु बाद में हरएक को १० हजार वार्षिक से अधिक न मिलेगा । धनी कुटुम्बों में उनकी शादियाँ हो जायं तो दूसरी बात है, अन्यथा इसका फल यह होगा कि वे अपनी प्राय से अधिकं खर्च करेंगे और शीघ्र ही सिर तक कर्ज में डूब जायेंगे । कारण, उनको क्या पता कि कम खर्च में कैसे काम चलाया जाता है। वे अपनी सन्तति को विरासत में और कुछ दें या न दें। खर्चीली श्रादतें, धनी मित्र और कर्ज़-ये तीन चीजें तो दे ही जाते हैं । इस तरह पीढ़ी-दर- पीढ़ी हालत अधिकाधिक खराव होती जाती है। यही कारण है कि वहाँ हर जगह ऐसी महिलाएं और भद्र पुरुप दिखाई देते हैं जिनके पास अपनी मान-मर्यादा को कायम रखने के साधन नहीं होते और इसलिए चे साधारण गरीबों से कहीं अधिक संकट में रहते हैं। हम जानते हैं कि कुछ ऐसे सम्पन्न कुटुम्ब भी हैं जो धनिकता के कारण पीड़ित नहीं हैं। वे स-ठूस कर नहीं खाते, ऐसे काम करते हैं जिससे स्वस्थ रह सकें। मान-मर्यादा की चिन्ता नहीं करते, सुरक्षित स्थान में पूजी लगाते हैं, कम व्याज पर ही सन्तोप कर लेते हैं और अपने बच्चों को सादगी से रहने और उपयोगी काम करने की शिक्षा देते हैं। किन्तु इसका तो यह अर्थ हुआ कि वे धनी श्रादमियों की तरह विल्कुल नहीं रहते । इसलिए उनको मामूली प्राय भी कानी हो सकती है। अधिकॉश धनी नहीं जानते कि उन्हें क्या करना चाहिए, फलतः वे समाज में होने वाले नाच-रंगों के चक्कर में पढ़ जाते हैं। उन के लिए यह चक्कर इतना कठिन होता है कि वे नौकरों से भी अधिक थक जाते है। चाहे खेलों के प्रति उन की रुचि न हो; किन्तु अपनी सामाजिक स्थिति के कारण घुड़दौड़ और शिकार पार्टियों में जाने के लिए वे विवश होते हैं। गाना सुनने का शौक न हो तो भी उन्हें नाटकों और रंगीन गायन मंडलियों में जाना पड़ता है। वे न तो इच्छानुसार पोशाक ही पहिन सकते हैं और न इच्छानुसार काम ही कर सकते हैं । वे धनी हैं, इसलिए जो दूसरे धनी करें वही उन्हें भी करना