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असमान प्राय के दुषदुष्परिणाम

असमान प्राय के दुष्परिणाम करेगा. क्योंकि उनके कुटुन्थियों की और उनकी शादत और रहन-सहन के ढंग समान नहीं होते और मिस पाचार-विचारों के लोग एक साथ नहीं रह सकते, श्राय की भिसत्ता के कारण ही याचार-विचार को भिन्नता पैदा होती है । मियों प्रायः अपनी पसन्द के पति नहीं पा सकती और इसलिए जो उपलन्य हो, अन्त में उसी के साथ विवाह कर लेने को मजबूर होती हैं। ऐसी परिस्थिति में अच्छी नस्ल कभी पैदा नहीं की जा सकती। यदि प्रत्येक कुटुम्ब के पालन-पोषण में बराबर रुपयश बर्च हो तो हमारे प्राचार-विचार, संस्कृति और रुचियां सब समान होंगे । तर रुपये के लिए कोई विवाह न करेगा. फारण उस समय विवाह में न तो रुपए का लाम होगा नहानि । अपने प्रियतम के दरिद्र होने के कारण ही किसी मी को उसमे विरत होने की आवश्यकता न पडेगी और न उस कारण टसकी कोई उपेश ही कर सकेगा । तब दिल-मिले जोदे यन सकेंगे और उन से अभीष्ट मन्तान पैदा हो सकेंगी। अममान श्राप के कारण सबको निष्पक्ष न्याय भी सुलभ नहीं होता । यद्यपि कानुनी न्याय का पहिला सिद्धान्त ही यह है कि व्यक्तियां का पमपात नहीं किया जाएगा। मज़दूर धीर करोड. न्याय में पति के बीच निष्पध होकर न्याय-नुला पकड़ी जायगी। न्यायाधीश और उसके सहवर्गापंचों के निर्णय के अतिरिक्त और किसी तरह व्यत्तियों की जिन्दगी या स्वाधीनता नहीं मानी जाएगी। किन्तु इंग्लएर में तथा अन्यन्न भी श्राजकल मजदूरों का न्याय मजदुर-पंच नहीं करते, करदाताओं के पंच उनका न्याय करते हैं जिनके दिलों में वर्गीय पक्षपात की भावना काम करती रहती है। कारण, उनको बड़ी शाय होती है और इसलिए वे अपने श्रापको श्रेष्ठ समझते हैं। धनी आदमियों का साधारण पंचम्याय करते है तो उन्हें भी उन पंचों की धर्गीय भावना और ईप्या का सामना करना होता है। इसीलिए यह श्राम कहावत चल पड़ी है धनी के लिए एक कानून है और गरीय के लिए दूसरा । किन्तु मूलतः यह टीक नहीं है, कानून सब के पर