पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१०३

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विचार-विमर्श

प्रशंसा इसमें की गई है उसमें यदि किसी को कुछ अत्युक्ति मालूम हो तो भी प्रशंसक महाशय क्षमा के पात्र हैं। क्योंकि वे बंगाली हैं और बँगाली यदि अपनी भाषा, बँगला, की प्रसंशा उचित से अधिक कर जायँ तो इसमें आश्चर्य को कोई बात नहीं। अपनी चीज़ सभी को अच्छी लगती है।

आश्चर्य हमें एक और बात देख कर हुआ। यह पुस्तक “Indian Literary Year Book" है। कुछ Bengali Literary Year Book―तो है नहीं। इस दशा में नाचीज़ हिन्दी की विशेष ख़बर न ली जाती तो हर्ज की बात न थी। मराठी, गुजराती और तामील आदि भाषाओं पर कुछ पते की बातें लिखना था। पर नहीं लिखा। इससे सूचित हुआ कि सम्पादक को अपने घर के सिवा बाहर की बहुत कम ख़बर है। अतएव अन्य भाषाओं के सम्बन्ध में उनकी कही हुई बातें आँखें मूँद कर मानने योग्य नहीं।

इस पुस्तक में ऐसी अनेक बातें हैं जिन पर आक्षेप किया जा सकता है। पर हमें पूरी पुस्तक की समालोचना करना नहीं। हमें तो हिन्दी के विषय में कुछ निवेदन करना है।

सम्पादक का कथन है कि हिन्दी में बँगला की ढेरों क्या अनन्त पुस्तकों का अनुवाद हो गया है-“The number of Bengali works translated into Hindi is simply enormous." आपके इस कथन में अत्युक्ति की विशेषता है। बँगला का महत्व दिखाने ही के लिए शायद आपने ऐसा लिखा है। हमारी प्रार्थना है कि अभी कुछ ही समय से बँगला-पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी में अधिकता से होने लगा है। सो भी विशेष करके उपन्यासों का। और विषयों की बहुत ही कम पुस्तकें

स० स०-७