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समालोचना-समुच्चय

बात के भ्रमात्मक ज्ञान की प्राप्ति हो जाय तो एक हानि के लिए दस लाभों का परित्याग न करना चाहिए।

विश्वकोष के प्रकाशक वसु ऐंड सन ने अपनी चिट्ठी में इस कोष की समालोचना “Review" प्रकाशित करने की जो आज्ञा दी है उसका हम पालन कर चुके। “आलोचना" से प्रकाशकों का मतलब इस कोष की केवल प्रशंसा या विज्ञापन से है। उनके पत्र से यही बात सूचित होती है, क्योंकि उन्होंने अपने पत्र में लिखा है―

“A good deal of the prospects of the book depend on your appreciation of its merit and public announcement of the same."

अतएव प्रकाशकों की आज्ञा के अनुसार हम विश्वकोष के गुणों का अभिनन्दन और प्रकटीकरण कर चुके। परन्तु हमारा कर्तव्य हिन्दी-विश्वकोष के प्रकाशकों की आज्ञा का पालन करने के सिवा और भी कुछ है। जो सज्जन इस लेख को पढ़ेंगे उनसे किसी महत्वपूर्ण समालोच्य पुस्तक के सम्बन्ध की कोई बात छिपा रखना उन्हें धोखा देना है और यह हम करना नहीं चाहते। अतएव हम इस कोष के सम्बन्ध की दो चार दोषावह बातें भी, अपनी समझ के अनुसार, लिखे देते हैं। सम्भव है, कोश के विद्वान् सम्पादक इसके अगले खण्ड तैयार करने में विशेष सावधानी से काम लें और यथाशक्ति त्रुटियों को दूर कर दें।

शुद्ध भाषा लिखना कोई बड़ी बात या बड़ा गुण नहीं। विश्वकोष जैसे दृहद् और महत्वपूर्ण ग्रंथ के सम्पादक विशेष विद्वत्ता और योग्यता-पूर्ण पण्डित ही हो सकते हैं। जब वे समस्त विश्व के ज्ञान-समूह पर निबन्ध रचना करने के लिए तैयार हुए हैं