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पराक्रमनी प्रसादी

सा मास्टर भी हिन्दी लिखने की कृपा नहीं करता। स्कूलों के कितने ही असिस्टन्ट इन्सपेक्टर, डिपुटी इन्सपेक्टर इन प्रान्तों में ऐसे हैं जो, यदि चाहें तो बहुत कुछ हिन्दी-प्रचार कर सकते हैं, पर नहीं चाहते। वे अपनी इन्सपेक्टरी ही में मस्त हैं। लिखना तो दूर रहा, वे हिन्दी की अच्छी से अच्छी पुस्तकों और पत्रों का नाम तक नहीं जानते। अफ़सोस।

बङ्गाल, महाराष्ट्र और गुजरात में यह बात नहीं। वहाँ उच्च-पदस्थ कर्मचारी भी अपनी भाषा की सेवा करते हैं। बड़े बड़े पारिस्टर, इन्सपेक्टर और हेड मास्टर अपनी मातृभाषा में पुस्तक-रचना करते हैं। अहमदाबाद के हाईस्कूल के हेड मास्टर, श्रीयुत केशवलाल हर्षदराय ध्रुव, बी० ए०, उन्हीं में से हैं। ध्रुव महाशय संस्कृत के उत्तम विद्वान्, पुरातत्व के अच्छे ज्ञाता और गुजराती भाषा के सुकवि तथा सुलेखक हैं। उन्होंने गीतगोविन्द मुद्राराक्षस, अमरुशतक और घटकर्पर आदि संस्कृतग्रन्थों के, गुजराती-अनुवाद कर के उन्हें टीका-टिप्पणी समेत प्रकाशित किया है। गवेषणापूर्ण भूमिकायें लिख कर उनमें उन्होंने मुल-लेखकों के समय आदि के विचार में अप्रतिम विद्वत्ता दिखाई है। गुजराती जाननेवालों में इन पुस्तकों का बड़ा आदर है। इस समय आप विक्रमोर्वशीय का एक महत्वपूर्ण संस्करण तैयार कर रहे हैं। उसकी भूमिका में कालिदास के सम्बन्ध में, आशा है, अनेक ऐतिहासिक बातों पर वे विचार करेंगे।

ध्रुव महाशय ने विक्रमोर्वशीय का अनुवाद भी गुजराती-भाषा में किया है और पुस्तक का नाम रक्खा है―पराक्रमनी प्रसादी। आपने पद्य का अनुवाद पद्य में और गद्य का गद्य में किया है। इस पुस्तक के पहले दो संस्करण, थोड़े ही समय में,

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