पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/१५५

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रीडरों में ब्राकेटबन्दी
(५) तीसरा अपर प्राइमरी
(६) चौथा
(७) पाँचवाँ मिडिल
(८) छठा

इन दरजों में जो रीडरें पढ़ाई जाती हैं उनकी लिपि फ़ारसी और देवनागरी दोनों हैं। जो लड़के फारसी लिपि में शिक्षा पाते हैं उनकी पुस्तकों की भाषा उर्दू होती रही है और जो देवनागरी में शिक्षा पाते हैं उनकी भाषा हिन्दी। सदा से यही नियम रहा है। इसमें अन्तर नहीं पड़ा। परन्तु पाँच सात वर्षों से गवर्नमेंट ने अपनी इस चिर-प्रचलित नीति को एकदम ही बदल दिया है। न मालूम क्यों, उसे यह सूझा कि लिपि चाहे फारसी हो चाहे नागरी, पर भाषा दोनों की एक ही होनी चाहिए। फल इसका यह हुआ कि पुरानी रीडरें ख़ारिज कर दी गईं और एकदम नई रीडरें जारी हुईं। ये नई रीडरें पहले बड़े बड़े विद्वान् अँगरेज़ों ने लिखीं। फिर हिन्दुस्तानियों ने इनका अनुवाद, देशी भाषा में, किया। तब वे मदरसों में जारी हुई।

इन रीडरों के जारी होते ही अध्यापकों, इन्सपेक्टरों और अन्य शिक्षित लोगों में असन्तोष के चिन्ह दिखाई देने लगे। जब यह असन्तोष बढ़ने लगा तब गवर्नमेंट से यह प्रार्थना की गई कि यद्यपि उर्दू और हिन्दी की प्रकृति एक ही है और व्याकरण भी दोनों का प्रायः एक ही है, तथापि दोनों का झुकाव जुदा जुदा दो भिन्न दिशाओं की ओर है। उर्दू का कुछ और ही ढंग है, हिन्दी का कुछ और ही। उर्दू में अरबी, फ़ारसी और