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आयुर्वेद-महत्व

सरकार तिब्बी और वैद्यक-चिकित्सा के प्रचार के लिए रुपया भी ख़र्च करने लगी और अब वह शायद ये चिकित्सायें सिखाने के लिए कोई स्कूल भी खोलने का विचार कर रही है।

मेजर डाक्टर रञ्जीत सिंह जी के विषात वचनों की विचिकित्सा यद्यपि कौंसिल ही में काफी हो चुकी थी, तथापि अायुर्वेद के कुछ प्रेमियों को उससे यथेष्ठ सन्तोष न हुआ। इस कारण वे पण्डित शालग्राम शास्त्री की शरण गये। आप अनेक गुणगणालङ्कृत हैं। आप शास्त्री होने के सिवा साहित्याचार्य भी हैं, विद्यावाचस्पति भी हैं, विद्याभूषण भी हैं, वैद्यभूषण भी हैं और कविराज भी हैं। लखनऊ के अमीनाबाद मुहल्ले में "मृत्युञ्जय" नामक एक औषधालय भी आपने खोल रक्खा है। पहले आप काँगड़ी के गुरुकुल में अध्यापन कार्य करते थे। वैद्यविद्या आपके घर में पुश्तों से चली आती है। मैं आपसे अच्छी तरह परिचित हूँ। आप चतुर चिकित्सक समझे जाते हैं। साहित्य के भी आप पूरे पण्डित हैं। साहित्य-दर्पण पर आपने एक उत्तम टीका लिखी है। वह प्रकाशित भी हो चुकी है। आप के गुणग्राम पर मुग्ध होकर लोगों ने आप ही से आग्रह किया कि वे मेजर साहब के आक्षेपों का युक्तिपूर्ण उत्तर दें। आपने इस अनुरोध को मान लिया। पर समय कम मिलने के कारण तीन वर्ष बाद आप उत्तर लिखने में समर्थ हुए। उत्तर आपका बहुत लम्बा हो गया। इससे उसे पुस्तकाकार निकालना पड़ा। नाम आपने उसका रक्खा है---आयुर्वेद-महत्त्व। पृष्ठ-संख्या उसकी ३०० के लगभग है, पर मूल्य केवल १) है। आप ही के औषधालय के पते पर पण्डित श्यामसुन्दर शर्मा भिषकरत्न को लिखने से मिलती है।

इतनी भूमिका के बाद अब इस पुस्तक का कुछ परिचय भी सुन लीजिए। इसकी कापी मुझे अपनी बीमारी के समय कानपुर