पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/२४३

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हिन्दी-नवरत्न

( १ )---"हिन्दी कविता के समान संसार में किसी भाषा की रचना ऐसी सौष्ठव और श्रुति-मधुर नहीं है"। भूमिकापृष्ठ ३० ।

"किसी भाषा की रचना ऐसी सौष्ठव........"नहीं है--यह बिलकुल ही अशुद्ध है।" सौष्ठव की जगह 'सुष्ठु' चाहिए। इसके सिवा सारे संसार की भाषाओं के विषय में वही मनुष्य कुछ कह सकता है जो उन सब को जानता हो। क्या लेखक उन सबको जानने का दावा कर सकते हैं?

( २ )---"ये क्षेपक गोस्वामी जी की रामायण में ऐसे लग गये हैं कि प्रायः रामलीलाओं में वे भी खेली जाती हैं"। पृष्ठ १५। इस पर टीका करना व्यर्थ है।

( ३ )---"इसके वर्णनों में किसी स्थान को उत्तम और किसी को साधारण कहना गोस्वामी जी से घोर अन्याय करना है"। पृष्ठ ५१

किसी 'पर' अन्याय किया जाता है, किसी 'से' नहीं ।

( ४ )--"कहते हैं कि गोस्वामी जी ने पहले सीयस्वयंवर और अयोध्या-कांड की कथा बनाई थी और इतना बन जाने पर उन्हें समग्र रामायण बनाने की लालसा हुई और तब उन्होंने शेष ग्रन्थ भी बनाया"। पृष्ठ ५०।

इसमें पिछले दो 'और' आजाने से बेतरह शिथिलता आगई। उन्हें निकाल कर उनकी जगह एक एक पाई ( फुलस्टाप ) रख देने से यह दोष दूर हो जाता।

( ५ )---"हमने उनका वर्णन थोड़े में स्थालीपुलाक न्याय दिखा दिया है"। पृष्ठ २१५।