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समालोचना-समुच्चय


कहलाता था। इस वंश के आदि पुरुष, बागुल के नाम पर उसका नामकरण हुआ है। ये लोग अपने को राठोड़-वंशी कहते थे। इनकी उत्पत्ति, राज्यप्राप्ति, शासन और उत्कर्ष आदि का वर्णन रुद्र कवि ने, ख़ूब नमक-मिर्च लगा कर, किया है।

इस वंश के नरेशों की राजधानी मयूरगिरि या मयूराचल थी। उसका वर्तमान नाम मुल्हेर है। यह नगर पहले खानदेश के अन्तर्गत था। अब नासिक ज़िले में है। यह पहाड़ पर बसा हुआ है। अब प्रायः उजाड़ है। किसी समय इसकी ख़ूब उन्नति थी। इसका क़िला बहुत मज़बूत था। सात वर्षों तक घेरे जाने पर भी वह मुसलमानों के कब्जे में न आया। तब अकबर ने राजा से सुलह कर ली। उसे उलटा कुछ दिया और यह वादा करा लिया कि अब से हमारे मुल्क में लूट मार न होने पावे। देहली और दक्षिण के बीच का मार्ग सुरक्षित रखना। राजा ने कहा―बहुत अच्छा। इसके बाद मयूरगिरि के अधिकारियों ने मुसलमानों की मदद भी बहुत की। कई लड़ाइयों में वे शामिल रहे और बड़ी वीरता दिखाई।

इन्हीं सब घटनाओं का वर्णन रुद्र-कवि ने इस महाकाव्य में किया है। इसके आरम्भ के कुछ सर्ग वंशादि वर्णन से भरे हुए हैं। बीच के कई सर्ग―१४ से १७ तक―जल विहार, ऋतु-वर्णन आदि लिखने में ख़र्च हो गये हैं। ऐसा न करने से इसकी गिनती महाकाव्य में कैसे होती?

रुद्र-कवि की कविता में एक गुण बड़ा भारी है। वह है― प्रसादगुण। आप अनुप्रास के बड़े भक्त थे। पर अनुप्रास की सिद्धि में प्रसाद-गुण नष्ट नहीं होने पाया। उदाहरण―