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समालोचना-समुच्चय


रहा था। उसे परास्त कर के अर्जुन ने गायें छुड़ा ली थीं। अर्जुन के उसी पराक्रम का वर्णन इस पुस्तक में है। इसमें प्रधान रस वीर है। कविता ओजस्विनी है। भाषा गद्यपद्यात्मक है। दो एक उदाहरण―

धृतराष्ट्रसुतैर्दृष्टः किरीटी विश्वतोमुखः।
एकोऽप्यनेकधा वल्गन्नात्मा नैयायिकैरिव॥

नैयायिक जिस तरह एक आत्मा को अनेक रूपों में देखते हैं उसी तरह धृतराष्ट्र-सुतों को सब तरफ अर्जुन ही अर्जुन दिखाई दिये।

शून्ये राष्ट्र प्रविष्टोऽयमाहर्तुं सुरभीरिमाः।
कर्णे निष्कृत्य पार्थेन मुक्तः कौरवकुक्कुरः॥

इस श्लोक में दुर्योधन के लिए कुक्कुर (कुत्ते) की पदवी देना ज़रा खटकता है।

भूमिका के पृष्ठ २ के नोट नम्बर ४ में "नाकनायकसभास्तम्भेन"―इस अंश में “नाक" शब्द रह गया है!

यह पुस्तक भी पाटन के पुस्तक-भाण्डार की दो प्रतियों के आधार पर सम्पादित हुई है।

[अप्रेल १९१८]
 

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