पृष्ठ:समालोचना समुच्चय.djvu/९९

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वैदिक कोष

मतलब यह कि कोश को सब प्रकार उपयोगी और ग्राह्य बनाने में कोई बात उठा न रक्खी जायगी। यह बहुत बड़ा काम है; बड़े पुण्य का काम है। बड़े परिश्रम, अध्यवसाय और विद्वत्व का काम है। पूर्वोल्लिखित स्वामियुगल को इस सदनुष्ठान के लिए धन्यवाद-“शतशोऽथ सहस्रशः"।

इस वैदिक कोश की अभी सिर्फ़ अनुक्रमणिका प्रकाशित हुई है। उसमें चारों वेदों के पदों की―सविभक्तिक शब्दों की―अकारक्रम से सूची दी गई है। प्रत्येक वेद के पदों की सूची अलग अलग पुस्तकाकार छपी है। कुल पुस्तक चार जिल्दों में है। पृष्ठ-संख्या सब की कोई एक हज़ार है। पुस्तक मोटे काग़ज़ पर छपी है। छपाई बम्बई के निर्णय-सागर प्रेस की है और बहुत अच्छी है। पुस्तक बड़े साँचे की है। प्रत्येक पृष्ठ में तीन तीन कालम हैं।

इस अनुक्रमणिका में आपको वेदों के सारे शब्द मिलेंगे। जो शब्द आप चाहें निकाल लीजिए। परन्तु इस सूची के प्रकाशन का केवल यही उद्देश न समझिए। शब्दों के क्रम के सिवा एक और बहुत बड़ी बात इसके निर्माताओं ने की है। उन्होंने प्रत्येक शब्द के आगे मण्डल, अध्याय, सूक्त, प्रपाठक आदि के और मन्त्रनिदर्शक अङ्क देकर यह भी बतलाया है कि अमुक शब्द कहाँ कहाँ पर प्रयुक्त हुआ है। उदाहरण के लिए “देवा:" शब्द को लीजिए। यह शब्द ऋग्वेद में कोई सौ जगह आया है। आपको इन सारी जगहों का हवाला इस शब्द के आगे मिलेगा। आप उन उन स्थलों को देखकर जान लीजिए कि उसका वहाँ पर क्या अर्थ है। अथवा किस भाष्यकार ने किस स्थल पर उसे किस अर्थ का द्योतक माना है। यह बड़े महत्व की बात है।