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पदार्थों की कीमत ।

के परिमाण में भी कमी-वेशी पैदा हो जायगी । कीमत कम होने से माँग चढ़ती है और अधिक होने से कम हो जाती है।

इसी तरह आमदनी या संग्रह से मतलब किसी चीज़ के किसी निश्चित परिमाण या वज़न से है जो किसी निश्चित कीमत पर बेच दी जाने के लिए प्रस्तुत हो। ऐसी चीज़ की कीमत अधिक मिलने से उसका परिमाण वढ़ता है और कम मिलने से घटता है । जब किसी चीज की कीमत अधिक आती है तब व्यापारी उस चीज़ को आमदनी को बढ़ाते हैं । नये नये व्यापारी उसका व्यापार शुरू कर देते हैं और बाज़ार को उस चीज से पाट देते हैं । विपरीत इसके क़ीमत कम मिलने से उसकी आमदनी कम हो जाती है। आमदनी और संग्रह में कुछ थोड़ा सा फर्क है । संग्रह किसी चीज़ के समान समूह का नाम है और आमदनी उसके उस अंश का जो बाज़ार में बेचने के लिए आये। अतएव आमदनी से संग्रह अधिक हो सकता है।

संग्रह और खप के लक्षणों में पारस्परिक विरोध है । अर्थात् एक का लक्षण दूसरे के लक्षण का बिलकुलही उलटा है। परन्तु संग्रह और खप में समता का होना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि यदि समता न होगी-यदि दोनों का समीकरण न होगा--तो चीज़ों का बदला करने में बड़ी कठिनता होगी और कीमत का निश्चय न हो सकेगा । अतएव संग्रह और खप, परस्पर एक दूसरे के झोंके खा खा कर, पापही आप समीकरण पैदा कर देते हैं और चीज़ों की कीमत निश्चित हो जाती है। इसका एक उदाहरण लीजिए।

कल्पना कीजिए कि एक गाँव में पाँच सौ आदमी रहते हैं। उनके घर फूस के हैं । बरसात सिर पर है। सबको अपना अपना घर छाना है । हर आदमी को एक एक गाड़ी फूस दरकार है। उसके लिए सब लोग दो दो मन अनाज देने को तैयार हैं । इस हिसाब से ५०० गाड़ी फूस की जरूरत है, जिनकी कीमत फ़ी गाड़ी दो मन अनाज हो । इस कीमत पर ५०० गाड़ी फुस मिल भीसकता है और नहीं भी मिल सकता । इस कीमत पर फूस बेचने की अपेक्षा कुछ यादमी शायद कंकड या लकड़ी वेचना अधिक लाभदायक समझे । अतएव फूस की कीमत यदि बढ़ाई न जायगी तो शायद एक भी गाड़ी फूस बिकने के लिए न आये, और यदि आवें भी तो बहुत कम । यदि दस पाँच गाड़ी फूस आवेगा तो इन ५०० आदमियों के बीच बँट जायगा। परन्तु यदि कुछ प्रादमी अधिक कीमत देने पर राजी होंगे ते फूस। की प्राम-

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