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सम्पत्ति-शास्त्र।

चीज़ों के खप और उनकी आमदनी या संग्रह में कमी-वेशी होने से कीमत में फर्क जरूर पड़ जाता है । इस दशा में कमी भाव चढ़ जाता है, फभी उतर जाता है । पर उत्पादन-व्यय का असर भी भाव पर ज़रूर पड़ता है। बल्कि यह कहना चाहिए कि मामूली तौर पर उसी के आधार पर चीजों की कीमत का निश्चय होता है । सप अधिक और आमदनी कम होने से भुना अधिक होता है। पर यह स्थिति बहुत दिन तक नहीं रहती। क्योंकि जिस चीज़ का स्वप अधिक होता है वह अधिक तैयार होने लगती है । आमदनी अधिक होनही बाजार भाच गिर जाता है । गिरते गिरते वह यहाँ तक पहुँच जाता है कि मजदूरो और मुनाफ़ से अधिक व्यापारी को और कुछ नहीं मिलता। अर्थात् उत्पादन-व्यय के बराबर क़ीमत आसाती है। यदि स्वप इतना कम हो गया कि उससे सव स्वर्च न निकला तो उस चीज़ का बनानाही बन्द हो जायगा और बन्द न होगा तो कम जरूरही है। जायगा । आमदनी कम से खप फिर बढ़ेगा और फिर कीमत बढ़ने लगेगी । अन्त में फिर कीमत लन्च के बराबर भाजायगी । इससे यह सिद्धान्त निकला कि आमदनी और खप में कमी-बेशो होने से, जैसा कि पहले लिख पाय है. क्लोमत में भी कमो-वंशी असर होता है। पर यह कमी-शो हमेशा एक सो नहीं रहती । गक निश्चित मर्यादा के कभी वह इस तरफ़ होजाती है, कमी उस तरफ । इसी मर्यादा का दूसरा नाम उत्पादन-व्यय है।

कल्पना कीजिए कि किसी जुलाहे ने एक जोड़ी रेशमी डुपट्टा तैयार किया। तीन रुपये का उसमें रेशम लगा और दिन में उसने उसे तैयार कर पाया । यदि बाट प्राने रोज़ उसकी मजदूरी रखी जाय तो तीन रुपये मज़दूरी के हुए । जिन तीन रुपयों का उसने रेशम लिया है, और जो तीन रुपये उसने साये है, उनका व्याज और दूसरे पर्चे जोड़ कर कुल एक रुपया और हुआ । अतएव, सब मिलाकर, एक जोड़ी डुपट्टे में सात रुपये उत्पादन- घ्यय लगा। जलादा उसे बाजार में बेचने गया तो एक ने ५ रुपये लगाये, दूसरे ने ६. तीसरे ने ७ : इस तरह चार ग्राहकों में से तीन तो निकल गये । चौधा रह गया । उसने साढ़े सात रुपये लगा दिये । एक जोड़ी कुपटा और एकाही ग्राहक । ग्यपार संग्रह बराबर हो गया। जुलाहे ने देखा कि मेरा वर्च भी निकला आता है और आठ आने मुनाफे के भी मिलते हैं। चलो, सौदा पट गया। उसने डुपट्टे बेच दिये । इस सौदे में उत्पादन-व्यय से आठ पाने