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पदार्थों की कीमत ।

अधिक कीमत मिली। अब यदि जुलाहे को रुपये की जरूरत होती और साढ़े सात रुपये लगानेवाला कोई न मिलता नौ सातही को बह बैच देता। या संभव है आने दो पाने कम भी लेलेता। पर अधिक नहीं। अधिक घास होने लगेगा तो शायद वह दुपट्टा बनानाही बन्द कर देगा । यह इस बात का उदाहरणा हुआ कि पदार्थों की कीमत हमेशा उत्पादन-व्यय के थोड़ा इश्वर या उधर हुअा करती है।

निर्वन्धहित वाणिज्य के कारण लाभ की मात्रा व्यापारियों को बहुतही कम रह गई है । व्यापार में इतनोचढ़ा-ऊपरी चढ़ गई है जिसका और ठिकाना नहीं । स्वदेशी चीजों का व्यापार करनेवालों की दशा तो और भी खराब है। जिस जुलाहे का उदाहरण ऊपर दिया गया है उसके साथ उसके ही देश के जुलाहे चढ़ा ऊपरी नहीं करते, किन्तु दृसरे देशों के भी करते हैं । व्यापार में किसी तरह की रोक टोक न होने के कारण विदेश से अपरिमित माल यहाँ आता है। इससे माल का संग्रह और आमदनी अधिक हो जाती है और भाव गिर जाता है। लोगों को हानि होने लगती है। हानि होने से कौन बहुत दिन तक हानिकारी व्यवसाय कर सकेगा ? फल यह हुआ है कि देश का व्यापार कम होता जाता है : क्योंकि यहां के माल की तैयारी में जो पर्च पड़ता है वहाँ नहीं निकलता, लाभ ना दूर रहा। बहुत सी चीजें ऐसी है जो विदेश में कलों से बनाई जाती है। यहाँ हाथ से । कलों से बनी हुई चीज़ों पर हाथ से बनी हुई चीजों की अपेक्षा चर्च कम वैठता है। इससे इस देश वाले विदेशी व्यापारियों का मुकाबला नहीं कर सकते। खैर विदेशी लोगों की चढ़ा-ऊपरी की बात जाने दोजिए. स्वदेशी व्यापारियों में भी तो चहा- ऊपरी होती है । एक को कोई व्यघसाय करते देख दूसरा भी वही व्यवसाय करने लगता है। इससे लाभ का परिमाण कम हुए बिना नहीं रहता । इस प्रतियोगिता-इस चढ़ा-ऊपरी–के ज़माने में वर्च बाद देकर थोड़ा सा । लाम हो जाना ही गनीमत है। अतएव पदार्थों की कीमत मर्च और गोड़े से लाभ के हो ऊपर अचलम्बित रहती है।

जिस चीज़ की तैयारी में जो वर्च पड़ता है वह, और थोड़ा सा मुनाफा, इन्हीं दो के जोड़ का नाम असल कीमत है । संग्रह फम, खप अधिक और संग्रह अधिक, स्वप कम होने से पदार्थों की कीमत में जो अचिरस्थायी कमी- वेशी होती है वह बाज़ार दर है।