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सम्पत्ति-शास्त्र।
सीमावद्ध संग्रह।

संसार में कुछ चीजें ऐसी भी हैं जिनका परिमाण या संख्या नहीं बढ़ाई जा सकती-जितनी है उतनी ही रहती है । उदाहरण के लिए किसी पुराने चित्रकार का चित्र, पुराने मूर्तिकार की बनाई हुई मूर्ति, पुराने सिक्कं आदि । ऐसी चीजों की कीमत पर ग्यच के तारनभ्य का बहुत ही कम असर पड़ता है, अथवा यो कहिए कि बिलकुल ही नहीं पड़ता। उनकी कीमत संग्रह और खप के समीकर,गा से ही निश्चित हो जाती है। कल्पना कीजिए कि किसी के पास महाराना प्रतापसिंह का एक नायाब चित्र है। उसके घनाने में जो पर्च पड़ा होगा उसका विचार बेचने के समय न किया जायगा । खर्च चाई जितना कम पड़ा, यदि ग्राहक बढ़त होंगे ना कीमत चढ़ती जायगी। चढ़ते चढ़ने जब एक ही प्राहक रह जायगा नव कीमत ठहर जायगी। क्योंकि सब ग्राहक एक ही कीमत ना देंग नहाँ 1 जिसको उसे लेने की सबसे अधिक इच्छा होगी, और उसके पास उतना म्पया भी होगा, वही सबसे बढ़कर क्रीमत लगावेगा । चित्र एक है। अनएच चढ़ा-ऊपरी करने करने जब ग्राहक भी एक ही रह जायगा तब बप और संग्रह का समीकरण हो जायमा र कोमन निश्चित होकर चित्र बिक जायगा। तात्पर्य यह कि इस सौदे में उत्पादन-व्यय का कीमत पर कुछ भी असर न पड़ेगा। केवल संग्रह सौर ग्वए के समीकरता सती कीमत निश्चित होगी।

पुराने चित्र और सिंक आदि पेसे पदार्थ हैं जिनका संग्रह चिरस्थायी रीति से सीमाबद्ध होता है। अर्थात् उनका संग्रह कभी बढ़ता ही नहीं। उनके सिवा बटुत सी चीजें संसार में ऐसी भी है जिनका संग्रह सीमाबद्ध तो होता है, पर हमेशा के लिए नहीं। कुछ समय तक तो वह जितना है उतना ही रहता है। उसके बाद वह बढ़ भी सकता है। खेत और खानि से पैदा होने वाली चीजें इसी तरह की है। गेहूं की एक फ़सल कट जाने के बाद उसका जितना संग्रह होता है, दूसरी फ़सल होने तक वढ़ नहीं सकता। यदि पृथ्वी में अनाज कम पैदा हो, अतएव उसकी माँग बहुत अधिक है। जाय, तो भी, चाहे कोई जितना रुपया खर्च करना चाद, नया अनाज होने तक, उसकी आमदनी नहीं बढ़ सकती। कल्पना कीजिए कि दुनिया भर में एक करोड़ मन गेहूँ होता है । परन्तु किसी देश में समय पर पानी न बरसने