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पदार्थों की कीमत ।

का व्यवसाय देवाधीन है। यदि पानी न बरसे तो एक दाना भो न. पैदा हो। इसले यदि यहाँ कारखाने खोले जाय और कलों की सहायता से चीज़ तैयार हो तो खर्च । कम पड़े, माल सत्ता विके और लाखों प्रादमियों का पेट पले। कल कारखाने खोलने और चलाने में रुपया ज़रूर दरकार होता है, और रुपये की इस देश में है कमो । यदि कुछ आदमी मिल कर कम्पनियों खड़ी करें तो यथेष्ट पूँजी एकत्र हो सकती है । उससे यदि उपयोगी चीजों के कारखाने खोले जाय तो विदेश से आनेवाले माल की कटतो कम हो जाय। देश का धन देश हो में रहे । दैन्य भी बहुत कुछ कम हो जाय । और अकेलो खेती के भरोसे रहने से जो हानियां होती हैं उनसे भी रक्षा हो।

कीमत और मेहनत का सम्बन्ध ।

मेहनत से चोज़ों की कीमत ज़रूर बढ़ जातो है; पर वह उनकी कीमत का एकमात्र कारण नहीं । यह नहीं कि मेहनत करने हो से सब चीजें कीमती हो जाती हो । कल्पना कीजिए कि किसी बढ़ई ने एक मेज़ तैयार की । उसको तैयारी में उसे ज़रूर मेहनत करनी पड़ी। पर यदि कोई उस मेज़ को न ले तो उसको कुछ भी कीमत नहीं। किसी पान से सोना निकालने में कम मेहनत पड़ती है, किसी में अधिक । पर दोनों का सोना यदि एकही तरह का है तो कीमत में कुछ भी फ़र्क न होगा। दोनों एकही भाव बिकेंगे। मेहनत का कुछ भी नयाल न किया जायगा। पोती सीप के भीतर निक लता है। पर माती बहुत कीमतो समझा जाता है, सोप नहीं। यद्यपि दोनों एकहो साथ निकलते हैं और उनके निकालने में मेहनत भी प्रायः घराबर पड़ती है । अतएव कीमत का एकमात्र कारण मेहनत नहीं। कीमत का कारण बहो उपयोगिता और अप्रचुरता है । यदि मेहनत से उपयोगिता न पैदा होगो तो कोई चीज़ कोमती न समझो जायगी । और जो चीज़ उप- योगी होती है उसी के पाने की लोग इच्छा करते हैं। अतएव जिस चीज़ को प्राप्त करने की जितनी ही अधिक इच्छा लार्गो को होगी उतनी ही वह अधिक कीमती भी होगी।

सारांश ।

चीज़ों की तभी क़दर होती है जब उनमें आदमियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के कोई गुण होते हैं और ये ऐसी होती हैं कि प्रचुर परिमाण में