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सम्पत्ति-शास्त्र।

तब उसके बदले रुपया खरीदा जाता है और जब कोई चीज़ माल ली जाती है तब उसके बदले रुपया बेचा जाता है । अतएव जितनीही अधिक बिक्री होगा उतनाही अधिक रुपया पाचेगा। इससे साबित है कि रुपया भी आमदनी और खप के सिद्धान्तों के अधीन है।

अन्यान्य खनिज पदार्थों की तरह खप बढ़ने से रुपये की भी कीमत बढ़ जाती है और उसका संग्रह भी अधिक होने लगता है । रुपया धातु से वनता है। धातु खानों से निकलती है। यदि खान से चाँदी कम निकले और रुपये का संग्रह लोग बढ़ाते जायें तो किसी दिन उसकी वृद्धि ज़रूर कम हो जायगी और उसका माल चढ़ जायगा। परन्तु यदि खानों से अधिक परिमाण में चाँदी निकलने लगे और रुपये का संग्रह प्रतिदिन बढ़ताही जाय तो ज़रूर उसकी कीमत कम हो जायगी। क्योंकि आमदनी और स्वप का सिद्धान्तही गेसा है। अमेरिका और आस्ट्रेलिया में चाँदी की नई नई खानों का पता लगा। उनसे बहुत चाँदी निकलने लगी । फल यह हुआ कि चाँदी सस्ती हो गई । इसका असर हिन्दुस्तान पर भी पड़ा। देखिए अब तक यहाँ चांदी सस्ती बिक रही है। यहाँ का सिका चांदी का है। और नांदी सस्ती हो रही है। इससे यदि इंगलैंड रुपया भेजना पड़ता है तो नुकसान होता है । क्योंकि इंगलैंड में सोने का सिका है। और सोना सस्ता दुपा नहीं। उसके बदले चौंदो के अधिक रुपये देने पड़ते हैं । इस तरह के अदला बदल में चांदी के सिक्कों की कीमत उसको मूल धातु, अर्थात् चांदी की कीमत के हिसाव से ली जाती है। सोने और चांदी की कीमत का तारतम्य देखकर जितनी चौदो जितने सोने के बराबर होती है उतनीहाँ इंगलैंडपाले लेने हैं। कम नहीं लेते।

सोने और चांदी पर आमदनी और खप का जो असर पड़ता है उसका एक उदाहरण लीजिए । नाटों और हुंडियों का उपयोग रुपये की जगह होता है । कल्पना कीजिए कि देश में कोई नौट और हुड़ियां नहीं है, और . न कहीं किसी देश या किसी खानि से सोने, चाँदी को आमदनी ही की आशा है । इधर देश में सम्पत्ति की खूब वृद्धि हो रही है। कल फारखानों म दूना माल तैयार हो रहा है । और आवादी भी बढ़ रही है । रुपया देश में जितना था उतनाहाँ हैं। उत्तनेहों से दूने माल की खरीद बेंच जारी है। अर्थात् माल तो दूना पर रुपया आवश्यकता से आधा । इसका मतलब