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रुपये की कीमत।


हुना । रुपया पीछे यह एफ पाना चार पाई उसके ढालने के चर्च के लिए है। मतलब या कि एक रुपया ढालने में एक पाना चार पाई सफा पड़ेगा और चादाट अाने पाद पाई को चांदी पर्च होगी। इस दशा में सिके ढालने में गवर्नमेंट को न कुछ हानि होगी, न लार | पर यदि एक आने चार पाई से कम पड़े तो गवर्नमेंट का जन्त लाभ होगा।

किसी किसी देश में लिो दालने का न्यर्च सरकार नहीं लेनी । इंगलेड में यही बात है। कहीं काही की प्रजा को यह अधिकार बहता है कि यह सोना-चाँदी देकर उसके नियंडला ले । यदि सरकार कानून को क से दलाई का म्वत्र देनी है तो प्रजा को भी बह देना पड़ता है पर यदि नहीं लेनी नो नहीं देना पड़ता। इंगलिस्तान की प्रजा बिना ढलाई का बर्च दिये ही सोने के सि सरझागे टकसाल में ढला सकती है। यहाँ सरकार टदाई का मन नहाँ लेती । यहां. हिन्दुस्तान में. दलाई का खर्च सरकार लेनी है । इसम ८९४ ईसवी के पहले जो लोग सिकं ढलान थे उनको म्वत्र देना पड़ता था। १८०४ ईसवी मे गवर्नमेंट ने प्रजा के लिए सियो दालन कर कानून रद कर दिया। अब बाट प्रजा के लिए सिकं नहीं टालती! जिनमा मिला दरकार होना है, बुद ही दालनी है। ग्लिश में जितनी धातु गहनी है। इसकी फोमन. पार सिर्फ ढालने का ग्पत्र, लेकर ही जा गर्ममेट लिगं बनाती है उसे न हानि होती है लाभ: उसका जमा ग्यत्र धराबर हो जाता है। सिक दालने का यह पहला प्रकार हुा । पर बिना दलाई का वर्च लिये ही यदि गवर्नमेंट सिकं ढाले, जैसा किगलेड में होता है, तो गवर्नमेंट को हानि होती है, क्योंकि उसे इलाई का मर्च नहीं मिलता ! यह इमरा प्रकार हुा । नीसरा प्रकार यह है जिसमें सि दाल कर. गवर्नमेंट शायदा उठाती है। हिन्दुस्तान में यद्दी होता है । यहाँ एक रुपये की कीमत १६ अनि रमानी गई है, पर उसमें जितने की चांदी कम रहती है उतना हल्लाई में ग्यच नहीं होना । अतएव खर्च होने ने जो कुछ बचता है वह गोया गवर्नमेंट का फायदा होता है । यह उसका हक है । अब यहां पर यह विचार, उपस्थित होता है कि न्यायसङ्गत कौन सा प्रकार है।

किसी चीज़ के बनाने में मेहनत पड़ती है । और मेहनत से कीमत और ऋदर जरूर बढ़ जाती है। आपके चाक़ में जितना फ़ौलाद लगा है उसकी