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सम्पत्ति-शास्त्र।

कीमत से चाकू की कीमत अधिक है या नहीं ? जन्नर है। फिर चाँदी पार सोने की बनी हुई चीज़ों की कीमत उतने ही बज़न की उन धातुओं की कोमत से क्यों न अधिक होनी चाहिए ? सिके धनने के पहले सिकं की धातु उतनी लाभदायक नहीं होती जितनी सिवन जाने पर होती है । अतएध यदि गवर्नमेंट १४ आने ८ पाई की चाँदी का लिशा बना कर १६ आने को चच और ग्यर्च निकाल कर उसे कुछ बच जाय तो कोई अन्याय की बात न हुई । यदि गवर्नमेंट के कुछ वत्र जायगा तो वह भी तो प्रजाही के काम आवेगा । हो यदि ऐसा न हो. यदि इस तरह की बचत का दुरूपयोग किया जाय, तो बान दूसरी है। टकसाल की आमदनी से जो वचत गवर्नमेंट को जाती है उसे पकनर का देस (कर) समझना चाहिए। यदि प्रजा की साम्यत्तिक अवम्या इस तरह का टैक्स देने के योग्य नहीं, तो यह ज़रूर मानना पड़ेगा कि गवर्नमेंट का यह काम अनुचित हुआ।

अब देखना चाहिए कि यदि गवर्नमेंट सिक्कों की ढलाई का खर्च न ले, अर्थात् ढले हुम सिकों की कीमत उतने ही बज़न की धातु के बराबर हो जितनी कि उनमें डाली गई है, तो क्या परिणाम होगा ? परिणाम यह होगा कि सिक्कों की धातु और साधारण धातु में कुछ भी फ़र्क न होने के कारण जब अंबर बगंगद बनाने के लिए लोगों को धातु दरकार होगी तब वे सिक को गला डालेंग बार जब सिय दरकार होंगे तब धातु की 'ईट लाद कर टकसाल पहुँचेंगे पर सरकार मे काँगे कि हमें सिक बना दीजिए। बस यही उलट फेर लगा महंगा पार गवर्नमेंट का व्यर्थ ग्यच होगा और व्यर्थ नकलीफ़ उठानी पड़ेगी। इस पर भी उसे एक कीड़ी का फायदा न होगा। तथापि कई देश ऐसे हैं जिनकी गवर्नमेंट सिकों की ढलाई का कुछ भी वर्च मजा से नहीं लेती। एंगलैंड में यही हाल है। वहां ढलाई का खर्च नहीं देना पड़ता : गवर्नमेंट मजा के लिए मुफ्त सिक बनाती है। कारण यार है कि गलैंड में वनुत व्यापार होता है । यह वनियों का देश है। यह तिजा- रती मुल्क है। इससे वहां के सिर कभो बैंकार नहीं रहते। और कार न रहने से उनकी दर कम नहीं होती। इससे उन्हें गलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इंगलैंड के प्यापारी दुनिया भर में व्यापार करते हैं। उनका लिया और देशों में खा जाता है । उसे लेने में और देशवालों को कुछ भी इनकार नहीं होता; क्योंकि उनकी कीमत थातु की कीमत के