पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१२

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भूमिका।


सूचित होता है कि सम्पत्तिशास्त्र-विषयक पुस्तकों के प्रकाशित किये जाने की लोगों को ज़रूरत मालूम होने लगी है। इस ज़रूरत को पूरा करने—इस अभाव को दूर करने—की, जहाँ तक हम जानते हैं, सब से पहले पण्डित माधवराव सप्रे, बी० ए०, ने चेष्टा की। हिन्दी में अर्थशास्त्र-सम्बन्धी एक पुस्तक लिखे आपको बहुत दिन हुए। परन्तु पुस्तक आपके मन की न होने के कारण उसे प्रकाशित करना आपने उचित नहीं समझा। आप की राय है कि अर्थशास्त्र-सम्बन्धी पुस्तक ऐसी होनी चाहिए जिसमें इस देश की साम्पत्तिक अवस्था का विचार विशेष प्रकार से किया गया हो। यहाँ की स्थिति के अनुसार सम्पत्तिशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग करके उनके फलाफल का विचार जिस पुस्तक में न किया जायगा वह, आपकी सम्मति में, यथेष्ट उपयेाग न होगी। आपका कहना बहुत ठीक है। आपको जब हमने लिखा कि सम्पत्तिशास्त्र पर हम एक पुस्तक लिखने का इरादा रखते हैं तब अपने प्रसन्नता प्रकट की और अपनी हस्तलिखित पुस्तक हमें भेज दी। उससे हमने बहुत लाभ उठाया है। एतदर्थ हम आप के बहुत कृतज्ञ हैं।

सम्पत्तिशास्त्र की अँगरेज़ी में "पोलिटिकल इकोनमी" कहते हैं। इस देश में किसी किसी ने इसका नाम अर्थशास्त्र रक्खा है। परन्तु यह नाम इस शास्त्र का ठीक वाचक नहीं जान पड़ता। क्योंकि "अर्थ" शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। केवल हिन्दी जानने वालों के मन में "सम्पत्ति" या "धन" शब्द के सुनने से तत्काल जो भाव उदित हो सकता है वह "अर्थ" शब्द के सुनने से नहीं हो सकता। "धनविज्ञान" "सम्पत्तिविज्ञान", या "सम्पत्तिशास्त्र" यदि इस शास्त्र का नाम रखा जाय तो वह इस शास्त्र के उद्देश का विशेष बोधक हो, और साधारण आदमियों की भी समझ में उसका मतलब झट आ जाय। "अर्थशास्त्र" कहने से यह बात नहीं हो सकती। इसी से हमने इस पुस्तक का नाम "सम्पत्तिशास्त्र" रखना उचित समझा।

जिन पुस्तकों के अध्ययन, अवलोकन और सहाय्य से हम इस पुस्तक के लिखने में समर्थ हुए हैं उनके लिखनेवालों के हम बहुत ऋणी हैं। उनके नाम आदि हम नीचे देकर अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करते हैं:-