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सम्पत्ति-शास्त्र।

इससे स्पष्ट है कि चेक और हुंडी ही से ज़ियादह काम लिया गया । यह भी एक तरह का कागजी रुपया है । इंगलैंड में सरकार खुद नोट नहीं वनाती, यहां का प्रसिद्ध "बैंक भाव इंगलैंड" बनाता है। ऊपर के लेख्ने मी सदी२.४८ जो नोट व्यवहार किये गये हैं वे उसी बैंक के नोट हैं।

यदि सब लोग सब काम में रुपये ही व्यवहार करने पर उतारू हो तान मालूम गवर्नमेंट को कितना रुपया बनाना पड़े । इसीसे नोट, हुंडी और चक आदि का चलन है । काग़ज़ी रुपया जारी करना सहज भी है और उसके व्यवहार से धाणिज्य-व्यवसाय में सुभीता भी बहुत होता है। आवश्यकता- नुसार कागजी रुपया जारी होता है और काम हो जाने पर नष्ट कर दिया जाता है। उसका आकुच्चन और प्रसारण-उसकी कमोवेशी-हमेशा आवश्यताही पर अवम्वित रहती है। उसके प्रचार से रुपये की कमी नहीं खलती । रुपये की कमी के कारगा व्यापार और लेन देन में जा बाधा आती है वह हुंडी, पुर्जे प्रार नोटों के व्यवहार से दूर हो जाती है ।

कागजी रुपये का पहले पहल प्रचार चीन में हुआ। जब और लोगों ने देखा कि नोट जारी करने से बहुत सुभीता होता है तब उन्होंने भो चीन की नकल की। धीरे धीरे उनका प्रचार सभी सभ्य देशों में हो गया । जैसे जैसे बाणिज्य व्यवसाय की वृद्धि होती है सही वैसे नोट जारी करने और हुंडी पुजें लिखने की अधिकाधिक ज़रूरत पड़ती है ।

नकद रुपये की तरह कागजी रुपये की भी कदर आमदनी और खप के सिद्धान्तों के अधीन रहती है । देश के लिए जितने कागजी रुपये की जरूरत "है उससे यदि वह अधिक हो जायगा तो उसकी कदर कम हो जायगी; और यदि जरूरत से कम हो जायगा ताक़दर बढ़ जायगी।