पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पाँचवाँ भाग।
सम्पत्ति का वितरण ।
पहला परिच्छेद।
विषयोपक्रम ।

माज को प्रथमावस्था में लोगों को स्वामित्व का कुछ भी खयाल न था । मिलकियत क्या चीज़ है, इस बात को लोग बिलकुलही न जानते थे । यह चीज़ मेरी है, यह पराई है-इसका स्वम में भी किसी को शान न था । तो जिस पेड़ ले चाहता था फल नाड़ लेता था: जो जिस जमीन से चाहता श कन्द-मूल म्वाद लेता था; जो जिस जानवर को चाहता था अपना शिकार बनाता था; जो जिस तालाब में चाहता था मछली मारता था | वह एक अजीब जमाना था । न अर्मादार थे, न महाजन थे, न मज़दूर थे । सब आदमी सब चीजों के बराबर हफ़दार थे। सभ्यता के समचार ने धीरे धीरे मिलकियत का ख़याल लोगों के दिलों में पैदा कर दिया । जैसे जैसे सभ्यता बढ़ती गई वैसेही वैसे यह नयाल भी जड़ पफड़ता गया कि यह मैरा घर है, यह मेरा खेत है, यह मेरो जमीन है । अर्थात् खेत, ज़मीन, आदि के रूप में सम्पत्ति को सब लोग अपनी अपनी समझने लगे। यह जमीन हमारी है, यह रुपया तुम्हारा है, यह खेत उनका है-इस तरह की बाते मनुष्यों के मनमें घोरे धोरे दृढ़ होगई। सब लोग अपनी अपनी चीज़ पर अपना अपना हक बतलाने लगे। सम्पत्ति के विसाग होगये । वह बँट गई। शुरुशुरू में न कोई महाजन था, न कोई मालिक था, न कोई मुलाज़िम था, न कोई मजदूर था। धीरे धीरे ये सब होगये और सम्पत्ति को आपस में बांट लेने लगे।

मिलकियत का होना यह मेरा है, यह पराया है, इस बात का माना जाना-सारी बुराइयों की जड़ है ! अनेक विद्वानों और विचारशील जनों की