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विषयोपक्रम ।

(३) कुछ अंश मजदूरों को देना पड़ता है।

अर्थात् जमादार, महाजन और मजदूरही सम्पत्ति के हिस्सेदार हैं। सम्पत्ति का वितरण विशेप करके इन्हीं तीन लोगों में होता है। इनके सिवा सम्पत्ति के दो हिस्सेदार और भी हैं । कल-कारखानों की बदौलत जो सम्पत्ति पैदा होती है उनके मालकों को भी कुछ देना पड़ता है । इस लिए सम्पत्ति के हिस्सेदारों का यह चौथा घर्ग भी माना जाता है । हिन्दुस्तान ऐसे पराधीन देश की सम्पति की हिस्सेदार हमारी गवर्नमेंट भी है। अक्ष- एव उसे भी शामिल कर लेने से हिस्सेदारों के पांच वर्ग हो जाते है, यथा:- ज़मींदार, गवर्नमेण्ट, महाजन. कारखाने के मालिक और मज़दूर-

(१) जो हिस्सा जमींदार को मिलता है उसका नाम है लगान ।
(२) जो गवर्नमेण्ट को मिलता है उसका नाम है मालगुजारी ।
(३) जेर महाजन को मिलता है उसका नाम है सूद ।
(४) जो कारखाने के मालकों को मिलता है उसका नाम है मुनाफ़ा।
(५) जा मजदूरों को मिलता है उसका नाम है मजदूरी या बेसन ।

इस भाग में इन्हीं बातों का संक्षेपपूर्वक विचार करना है । लगान, मालगुजारी, सूद, मुनाफ़ा और मजदूरी के नियम क्या है, उनका परस्पर सम्बन्ध कैसा है, एक मै कमी वेशी होने से दूसरे में किस प्रकार और कैसे फेरफार होते हैं इन विषयों के सम्बन्ध में सम्पत्तिशास्त्र में अनेक सिद्धान्त निश्चित किये गये हैं । उन्हीं का दिग्दर्शन इस भाग में किया जायगा। सूद भी एफ तरह का मुनाफ़ा है । पर उसमें और कारखाने के मालकों के मुनाफे में कुछ फ़र्क है । इससे इन दोनों का विवेचन अलग अलग करना पड़ता है।

लगान, सूद और मज़दूरी कहीं कहीं एकही आदमी को मिलती है, कहाँ कहाँ जुदा चुदा आदमियों को । जिसकी जमीन है वहीं यदि पूंजी मी लगावे और मेहनत भी करे तो सम्पत्ति के ये तीनों हिस्से उसे ही मिल जायँ। पर हिन्दुस्तान ऐसे अभागी देश के लिए यह बात कहाँ । यहाँ की गवर्नमेण्ट ने जमीन पर अपना दखल कर लिया है। वह कहती है यहाँ को ज़मीन उसी को है वही उसकी मालिक है । अतएव यदि कोई पूँजी और मेहनत दोनों अपनी ही लगाये तो भी उसे लगान गवर्नमेण्ट को देना पड़ता है । पर ऐसा बहुत कम होता है । यहां के किसानों को पूँजी