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सम्पत्ति-शास्त्र।


भी महाजन से लेकर लगानी पड़ती है। इससे उन बेचारों को जमोम से उत्पन्न हुई सम्पत्ति का सिर्फ एक अंश, अर्थात् केवळ मजदूरी, मिलती है। बहुधा उन्हें मजदूरी भी और लोगों से करानी पड़ती है । इस दशा में मज़ दूरी में से भी कुछ हिस्सा प्रारों को बांट देना पड़ता है। यह सब करने के बाद शायदही किसी को कुछ बचता हो।

जमोन, मेहनत और पूंजी से उत्पन्न होने वाली सम्पत्ति का विभाग भित्र भित्र देशों में भिन्न भिन्न रोति से होता है । योरप के कई देशों में सम्पत्ति की उत्पत्ति के तीनों साधन-जमीन, मेहनत और पूंजी-एकही आदमी के अधीन है । पर इस देश के भाग्य में यह बात नहीं । लगान, सूद और मजदूरी अादि का परिमाण भी सब धेशों में एकसा नहीं होता है कहीं कम होता है, कहीं अधिक । हिन्दुस्तान के महाजनों को जितना सूद मिलता है, गलैण्ड बालों को उतना नहीं मिलता। इसी तरह इंगलैण्ड के मजदूरों को जितनी मज़दूरी मिलती है, हिन्दुस्तान घालों को उन्ननी नहीं मिलती। यही हाल रहमान का भी है। इंगलैण्ड में लगान का निख चढ़ा- ऊपरी से निश्चित किया जाता है। इससे उसमें बचत को जगह रहती है। हिन्दुस्तान में मवर्नमेण्ट अपनी समझ के अनुसार मनमाना लगान लगाती है और उसे दस, बीस या तोस वर्ष बाद बढ़ाती रहती है। इससे इस देश में जमीन का लगान बहुत बढ़ गया है-इवना कि हर साल हजारों किसानों को लोटा थाली बेंचकर भीख मांगने की नौबत पाती है।

जिस तरह ज़मोन से उत्पन्न हुई अपज का विभाग होता है प्रायः उसी तरह कल-कारखानों से उत्पन्न हुई चीज़ों का भी विभाग हैरता है । क्योंकि जो चीजें कल की मदद से तैयार होती हैं, या हाथ से बनाई जाती हैं, चे भो तो किसी न किसी रूप में जमीन ही से पैदा होती हैं। सारा कच्चा पाना समीन ही की यधौलत प्राप्त होता है । इस तरह की चीजों के दिमाग में जो थोड़ासा अन्तर है वह मुनाफेका प्रकरणा पढ़ने से मालूम होजायगा ।

दूसरा परिच्छेद ।
लगान ।

किसी की ज़मीन, जंगल, नदी, तालाब, सान, मकान आदि का व्यथ हार करने के लिए जो कुछ बदले में दिया जाता है उसका नाम लगान है ।