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सम्पत्ति-शास्त्र।

जमीन का लगान लेते की दोरीतियाँ हैं। एक तो रिवाज,दुसरी चढ़ा ऊपरी । किसी किसी देश में, वहाँ के रीतिरिवाज के अनुसार. पदावार का आधा, तिहाई, चौथाई था पाँचर्चा हिस्लर लगान लिया जाता है। किसी किसी देश में लगान की मर्यादा चढ़ा ऊपरी पर अवलम्बित रहती है। अर्थात् जो सबसे अधिक लगान देता है वो ज़मीन पाता है और उसीकी दी हुई रकम लगान की मर्यादा मानी जाती है।

जमीन एक ऐसी चीज़ है जिसका संग्रह बन्द नहीं सकता । अर्थात् वह जितनी है उतनी ही रहती है। उसकी आमदनी तो कहों से होती नहीं, इससे उसका संग्रह नहीं बढ़ता पर उसका पप सब कहीं है-उसकी ज़रूरत सब कहाँ है । प्रजावृद्धि के साथ साथ उसकी जरूरत और भी अधिक होती जाती है-अर्थात्. उसका खप और भी बढ़ता जाता है। खप अधिक होने से चीज़ों की क़ीमत बढ़ता है ! यह बात पहले किसी प्रकरण में सिद्ध को जा चुकी है । जमीन का स्वप अधिक होने से उसकी भी कीमत बढ़नाहीं चाहिए । जमीन की कीमत के बढ़ने से मालब, उसे उपयोग में लाने के बदले जो लगान देना पड़ता है, उसके बहने से है। कीमत बढ़ना और कुछ नदी. लगान बढ़ाना है। अब इस बात का विचार करना है कि सब तरह की जमीन का लगान एकसा क्यों नहीं होता? जुदा जुदा जमीन का लगान जुदा जुदा क्यों होता है?

जमीन में दो गुण होने से लगान पाता है । एक तो उसमें उपजाऊपन होना चाहिए । दुसरं उसे सुभीत की जगह होना चाहिए । इन दो बातों के न होने से कोई जमीन का लगान देने पर राजी न होगा। जो जमीन उप- जाऊनहीं है जो रेतीली यह पहाड़ी है...अतगध जिसमें कुछ नहीं पैदा होता, उसं कौन लेगा ? म यदि यह उपजाऊ है. पर बस्ती से बहुत दूर है, या वहाँ की आबोहवा असली नहीं है तो भी कोई उसका लगान न देगा। क्योंकि दूर जाकर खेती करने और वहाँ से अनाज हो कर घर या किसी बाजार में ले जाने का सुभीता सदज़ में नहीं हो सकता । ग्वालियर की रियासत में लाखों चौघे जमीन परतो पड़ी हुई है। यह उपजाऊ तो है, पर बस्ती से बहुत दूर है। इससे उसका लगान नहीं आता ! हाँ. यदि, वहाँ बस्ती हो जाय तो ज़रूर उसका लगान प्राने लगे । मतलब यह कि जब ज़मीन उप- जाऊ होकर सुभीते की जगह में होती है तभी उसका लगान आता है,