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लगान।

अन्यथा नहीं । ज़मीन के उपजाऊपन और मोकं में न्यूनाधिकना गती । इसोसे लगान में भी न्यूनाधिकता होती है ।

कल्पना कीजिए कि एक नगर "क" नामक। उसको माबोदवा भी अच्छी है पर जमीन भी अची। इसीने या घर की एक चम्नी । इस बन्नी के पास की जमीन सेवा यादों को प्रामारोपयोगी सय सामग्री पदा हो सकती है। धीरे धीरे या की याबादी बढ़ गई-मनुष्यनमग्या अधिक होगई । अनगर यहां को जमीन से उत्पन्न हुई सामग्री में वाचालों का काम न चलने लगा --उनकी जमरने न रफा होने लगी।

इस "क" नामक जगा में मोल दूर "व" नामक एक जगह और. है। वहां को प्राचीसया नो बहुत प्रसन नाही, पर जमान उपजाऊ है । एक प्रौर जगह "ग" नामक यह "क" नामक जगा में सिर्फ ३ मील दूर है। यहां की भी जमान युगे नही, पर उसमें प्रनि बीच ४ मन अनाज कम पैदा होना है। अब यदि "क" नामक स्थान में सब लोगों के लिए यानी अनाज नपैदा होगा ना कुछ पादमी"ग' या "ग" नामक जगा में जाकर जमा पती करेंग।"" म्यान में पता करने में प्रति धीमन पनाज कम पैदा दोगा और "म" में करने मे दुलाः पाटि या गर्न वाद देकर पनि बीघे मन अनाज कम मिलेगा । पनराय पटले योग "ग" नामक ग्यान में गीगा चला गनी करने से भी र्शद मनालय भर के लिए प्रनाज न उत्पन होगा नो "म" नामक म्यान में भी करने लगंगि। "ग" नामक स्थान में पनी शुरु होत ही "क" नामक स्थान को जमीन का लगान प्रांत लगेगा। विना लगान फिर कोई यहां की जमीन न पा सकेगा। यहां का जमादार उस समय से अपनी जमीन का लगान की बीघा मन अनाज पायेगा। क्योंकि "ग" नामक ज़मीन फी अपेक्षा "क" नामक जमीन में मन अनाज अधिक पदा होता है। अब यदि "ख" नामक पान में भी लोग लाचार कर ग्यती करने लगेंगमा "क" म्यान के ज़मीदार को की बीघ , मन मार "ग" मामक स्थान जमीदार कोको वाये। मन 'अनाज लगान मिल सकंगा । कि "मन" नामक म्यान की ज़मीन की रक्षा "क" नामक जमीन में , मन और 'ग" में १ मन अधिक अनाज पैदा होता है।

अनाज मनुष्य का प्राणरक्षक सोने के फारसा सभी लोग उस पाने का यन करने हैं। अतएच सावदेशिक मांग होने के कारण "" नामक

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