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सम्पत्ति-शास्त्र।

जमीन का अनाज जिस भाव बिकेगा, "क" और "ग" नामक ज़मोन का भी अनाज उसी भाव विकेगा । पर "ख" नामक जमीन की अपेक्षा "क" और "ग" नामक ज़मीन के मालिकों को यथाक्रम ५ और १ मन अनाज लगान मिलेगा । इस लगान के कारण अनाज मोल लेने वालों को कुछ भी हानि-लाभ न होगा । क्योंकि "न" और "ग" नामक स्थानों से अनाज ढोने आदि में किसानों को जो खर्च पड़ेगा, "क" नामक स्थान में खेती करने से उतना ही लगान देना पड़ेगा। दोनों रकम बराबर हो जायेंगी ! अनाज न पहले से मँहगा विकेगा न सस्ता ।

यदि "क" और "ग" नामक स्थानों के ज़मींदार किसानों से लगान लेना चन्द फरदं तो अनाज मोल देने वालों को तो नहीं, पर किसानों को अलबचे मायदा होगा। क्योंकि "" नामक स्थान की जो बिना लगाम की जमीन है उसी को उपज के वप के अनुसार अनाज का भाव स्थिर होगा । अतएव यह करना चाहिए कि घाज़ार-भाव पर लगान का कुछ भी असर नहीं पड़ता । "क" और "ग" नामक स्थानों के किसान जी अनाज पविगे उसे ये यदि सस्ता बच्चंग तो "म" नामक स्थान वाले उनके साथ चढ़ा-ऊपग करने में सफलमनोरथ न हाँग । यदि वे नेती करना बन्द कर देंगे तो "क' पीर "ग" नामक स्थानों की जमीन की उपज से उन की जरूरत न नफा होगी । अतएव अनाज का भाव फिर प्रापही आप चढ़ेगा। और, फिर "ग" स्थान बालों को ग्यती करनी पड़ेगी। इन वानों से यह निष्कर्ष निकला कि "व" नाम मील दूर की जमीन, पार "ग" नामक कम उपजाऊ जमीन, का अनाज "क" नामक स्थान में बेचने के लिए लाने से जो परता पड़ता है. उसे "क" नामक स्थान के अनाज फा परता लगाने पर जितना अनाज अधिक निकलेगा उतनादो "क"स्थान की ज़मीन का रगान होगा।

तालाब और जंगल की उपज पर भी इसी नियम के अनुसार लगान लगना चाहिए। परन्तु खान से उत्पन्न होने वाली चीजों के विषय में यह नियम नहीं चल सकता, क्योंकि खनिज चीजें खान से निकाल लेने पर फिर यहाँ कुछ नहीं रह जाता । किसान लोग अनाज पैदा होने की आशा से खेत में खाद आदि डाल कर जमीन का उपजाऊपन बना रखते हैं । जल से मछली निकाल लेने से जल कम नहीं होता, और जंगल से पेड़ काट