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लगान।

प्रचार हो तो ज़मीन के गुण-दोष लोगों की समझ में आ जायें; वे जमीन को अधिक उपजाऊ बनाने का यत्न करें; जहाँ सुभोते की ज़मीन मिल सकतो हो वहाँ जाकर खेती करें, यदि कोई उनसे अधिक लगान मांगे तो उसकी ज़मीन छोड़ दें। पर शिक्षा के प्रभाव से ये बातें लोगों के ध्यान में नहीं आती। और और शिक्षित देशों की प्रजा इन कामों को अच्छी तरह जानती है । इससे यदि वहाँ के ज़मींदार लगान पढ़ाते हैं तो प्रजा उनकी जमीन छोड़ कर अन्यत्र चली जाती है और सुभीने की ज़मीन हूँढकर वहीं खेती करने लगती है। इससे यहाँ के जमींदार प्रजा के साथ सस्ती नहीं करने । परन्तु यहां की दशा वैसी नहीं । यहाँ यदि गवर्नमेंट या जमींदार को यह मालूम होजाता है कि कुछ भी अधिक लगान किसी जमीन पर .. लगाया जा सकता है, तो फ़ौरन ही लगा दिया जाता है, और चारो प्रजा, और कोई व्यवसाय न कर सकने के कारग्स, चुपचाप उनकी बात मान लेती है। यदि प्रजा समझदार और शिक्षित होती तो ऐसी जमीन को छोड़ देती और ग्वालियर आदि रियासतों में जो लाखों बीघे टपजाऊ जमीन परती पड़ो है उसे जाकर थोड़े लगान पर जोतती । हर्प की बात है, वगाल के कुछ समझदार आदमी अपना देश छोड़ कर खेती के लिए सुभीते की जगहों में अब आबाद होने लगे हैं।

जमींदारों को चाहिए कि पहले वे खुद शिक्षा प्राप्त करें और ज़मीन किस तरह उपजाऊ बनाई जाती है. इसके नियम जाने । पूसा और कानपुर में खेती की विद्या सिखलाने के जो कालेज है उनमें उन्हें अपने होनहार लड़कों को भेजना चाहिए। यदि वे ऐसा करेंगे तो उनको और उनकी जमीन जोसनेमाले किसान दोनों को फायदा होगा। जमींदार शिक्षित होगा तो वह अपनी जमीन जोतनेवालों को प्रेती की उन्नत प्रणाली सिखलावेगा, उसका उपजाऊपन बढ़ाने का तरकीबें बसलायेगा, और अनेक प्रकार से उन्हें उत्साहित करके पैदावार को बढ़ावेगा। इससे लगान भी उसे अधिक मिलेगा और किसानों की दशा भी सुधर जायगी ।

खेती की पैदावार का निर्ख ।

जैसा ऊपर लिखा जा चुका है, लगान खेती की पैदावार का वह हिस्सा है जो, जमीन के उपजाऊपन के खयाल से, खेती की सबसे निकृष्ट ज़मीन के स्वयं को निकाल डालने से धाक़ी रहता है। उसका सम्बन्ध सिर्फ काश्तकार