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सम्पत्ति-शास्त्र।

लगान बढ़ने से गवर्नमेंट को नहीं, किन्तु जमीन के मालिक क्रमोंदारों को फायदा होता है। अनाज महंगा हुए विना लगान नहीं बढ़ता। और अनाज महँगा होतेही सारो जिन्सों की कीमत बढ़ जाती है ये सब महँगो होजाती हैं। रोज़ के व्यवहार की साड़ो चीजें महँगो होजाने से खर्च की मात्रा पहले से अधिक हो जाती है। इससे गरीब आदमियों का पेट भर खाने को नहीं मिलता। देश में महर्खता होने से जिने देखो वही पेट पर हाथ रक्खे घूमता है। संग्रह प्रारः पूजी का देश में कहीं नाम नहीं। फल यह होता है कि मज़दरों को मजदूरी नहीं मिलतो और चारों मोर हाहाकार मचा रहता है।

किसी किसी का यह याल है कि आवादी बढ़ने से देश समृद्धिशाली होना है। या नम है। मानादी बढ़ने से सब देशों की उन्नति नहीं होती। जहाँ बहुत सी उपजाऊ जमीन परली पड़ी हो, और व्यवहारोपयोगी सब चोजें सस्ती हो. वहीं पायादी बढ़ने से अधिक सम्पत्ति उत्पन्न हो सकती है, और सम्पत्ति की अधिक उत्पत्ति से रद्दी के निघासो पहले से अधिक समृद्धिशाली हो सकते हैं। आबादी बढ़ने से अनाज का खए अधिक होता है । अच्छी जमोन सत्र जुतलाने से. बढ़े हुए नप के बराबर अनाज को आमदनी करने के लिए युरो ज़मीन जोतनी पड़ती है। इससे उत्पत्ति का खर्च बढ़ता है और अनाज महंगा हो जाता है। अनाज महंगा होने से व्यवहार की प्रायः सभी चीज़ महँगो होजाती है। इसका परिणाम क्या होता है, सो ऊपर लिग्नाही जा चुका है। हां यदि आबादी बढ़े, पर उसको बाहता के साथ उपजीविका का लर्च न बढ़े, तो देश की हानि नहीं हो सकतो। प्रास्ट्रलिया और अमेरिका में बहुत सी उपजाऊ जमीन पड़ी हुई है और मजदुरी को संख्या भी कम है। वहां आबादी बढ़ने से हानि के बदले लाभ होने को अधिक सम्भावना है। पर हिन्दुस्तान की स्थिति वैसी नहीं । यहाँ बटुत कम अच्छी जमीन परती रह गई है। मजदूरों की भी कमी नहीं है । अत्तएच याहाँ आबादी बढ़ने से देशका लाभ नहीं हो सकता । यहाँ गत तीस चालीस वर्ष में जिस मान से आबादी बढ़ी है उस मान से सम्पत्ति की वृद्धि नहीं हुई। उलटा, सर्वसाधारमा की उपजीविका के साधन घट गये हैं । करोड़ों भादमियों को दिन रात में एक बार भो पेट भर खाने को नहीं मिलता । फिर, यह देश कृषि-प्रधान है । खेती से ही निर्वाह करनेवालों