पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१४

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भूमिका


ऐसे हैं जिनका अनुसरण करने से पश्चिमी देशों का तो लाभ है, पर हिन्दु स्तान की सर्वथा हानि है। ऐसे नियमों के हमने त्याज्य समझा है और पाश्चात्य सम्पत्तिशास्त्र की यहीं तक अनुसरण किया है जहाँ तक मनै, अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार, इस देश का लाभ देखा है । जहाँ हमने पाश्चात्य सिद्धान्तों के प्रयोग से इस देश का हितधिरिध देखा है वहाँ, जो कुछ हुमने लिखा है, सत्र अपनी तरफ़ से लिखा है। कई एक परिच्छेद तो हमने अपनी निज की कल्पना से बिलकुल ही नये लिखे हैं। सम्पतिशास्त्र को आधार व्यवहार हैं। प्रत्येक देश के व्यवहार में अन्तर होता है । इस शास्त्र के कितने ही नियम ऐसे हैं जिन्ह ईगलंड के सम्पत्तिशास्त्री मानते हैं, पर फ्रांस के नहीं मानते। किंतनेही नियमों को फ़ास चालै मानते हैं, पर जर्मनी वाले नहीं मानते । जिन कितने ही सिद्धान्तों को योरप वाले प्राप्त समझते हैं, उन्हीं के अमेरिका चाले त्याज्य समझते हैं । अब पाश्चात्य वैश हों का यह हाल है तब उनके निश्चित किये हुये नियमों का सम्पूर्ण अनुसरण हिन्दुस्तान के लिए कदापि लाभकारी नहीं हो सकता । इस वात के हमने हमेशा ध्यान में रक्ख़ा है और जो सिद्धान्त इस देश के लिए लाभ-जनक नहीं मालूम हुए उनके। हमने नहीं स्वीकार किया | हम नहीं कह सकते कि इसमें हम कहाँ तक कूतकाय हुए हैं। इf इतना हृम अवश्य कह सकते हैं कि पुस्तक के इस देश की दशा के अनुरूप बनाने में हमने कई बात उठा नहीं रखी । यहाँ के प्रतिष्ठित विद्वानों की राय है कि इस देश के लिए स-पतिशास्त्र-चिपयक वली पुस्तक उपयेागी होगी जो देश की आर्थिक अवस्था के ध्यान में रख कर लिखी जायगी । कुछ समय हुअर इममें कहीं. पहा था कि कलकत्ते में जो इंडियन कौसिल आव् इजुकेशन नामको एतद्देशीय-शिक्षा-सम्बन्धिनी समिति स्थापित हुई है वह ऐसी हो एक पुस्तक लिखाने की फ्रिक में है। मालूम नहीं, पुस्तक लिखी गई यों नहीं ।

इस पुस्तक के पहले हमने पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध नामक दो खण्डों में विभक्त किया है। फिर प्रत्येक खण्ड की विषयानुसार कई भागों में बाँटकर, एकएक विपयांश का विवेचन अलग अलग परिच्छेदों में किया है। पूर्वार्द्ध के सात भाग किये हैं, उत्तर के पाँच पूर्वाद्ध में सप्ताईस परिच्छेद हैं।