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मालगुजारी।


का प्रबन्ध वह कैसे कर सकेगा! कर के रूप में प्रजा से द्रव्य प्राप्त करके राजा जो रेल, सड़कें और नहरें आदि बनवाता है उससे घ्यबहार की चीज़ों के गमनागमन में बड़ा सुभीता होता है । रेल या अच्छा रास्ता न होने के कारण पहले अनाज एक जगह से दूसरी जगह नहीं भेजा जा सकता था । जहां पैदा होता था वहीं बिकता था । अतएव उससे पार लोगों को कुछ भी फायदा न पहुँचता था । पर रेल और सड़कों की बदौलत अब यह अधिक मूल्यवान् होगया है और दूसरं देशों को ज़रूरने भी वह दूर कर सकता है। सरकार जो कर, जो महसूल या जो मालगुजारी प्रजा से वसूल करती है उससे वह पुलिस पार न्यायाधीश आदि नौकर रखकर चोरों, लुटेरों और डाकुओं से सम्पत्तिमान आदमियों की रक्षा करती है-उन्हें अपने .. परिश्रम का फल भोग करने को समर्थ करती है । इससे सेना बढ़ाने मार युद्ध का खर्च घसल करने के लिए जा कर सब लोगों को देना पड़ता है उसका विचार यदि सम्पत्ति-शास्त्र के इस सम्पत्ति वितरगा-विभाग में न हो ता न सही, पर, व्यावहारिक वस्तुरूपी सम्पत्ति उत्पन्न और तैयार करने वालों के लाभ के लिए जो महसूल या जो कर लिया जाता है उसका विचार ते यहाँ होनाही चाहिए। करों के तारतम्य का विचार हम इस पुस्तक के उत्तरार्द्ध में करेंगे ।

करों से सम्बन्ध रखने वाले सिद्धान्तों का उल्लंन भी वही होगा पार जा कर इस देश की गवर्नमेंट प्रजा से लेती है उनका भी दिग्दर्शन नहीं किया जायगा । यहाँ, इस परिच्छेद में, हम गवर्नमेंट की सिर्फ उस नीति का थोड़े में विचार करेंगे जिसके अनुसार वह जमीन की मालगुजारी प्रज्ञा से वसूल करती है । सरकार को जो आमदनी प्रजा से, होती है उसका अधिकांश उसे जमीन की मालगुजारी से ही मिलता है । प्रजा के जीवन-मरण और दरिद्रता या सधनता का सरकार की इस नीति से बात धना सम्बन्ध है। इसले, इसके पहले परिच्छेद में, ज़मीन के लगान से सम्बन्ध रखने वाले व्यापक और सर्वसाधारण नियमों का विचार कर चुकने के बाद जो माल- गुजारी सरकार ज़मींदारों और काश्तकारों से जमीन जोतने के कारण लेती है उसका भी विचार इस परिच्छेद में लगे हाथ कर डालना अच्छा है । सरकार को जो कर, लगान या महसूल मिलता है यह सभी मालगुजारी में दाखिल है। पर यहां सिर्फ ज़मीन की मालगुजारी के विषय में दो चार बात कहनी हैं।