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सम्पत्ति-शास्त्र।

प्रजा की यह दशा हुई है। विशेष करके गरीबी ही के कारण प्रजा उजड़ती जाती है और आज कल लग से मरती जाती है। पर मालगुजारी कम नहीं होती । कम होना तो दूर रहा, गत पन्द्रह वर्षों में बढ़कर वह २,२५,००,००० रुपये से २.८८,७५,००० गई है। अर्थात् फीसदी ३० रुपया प्रजा से अधिक वसूल किया गया है।

और प्रान्तों की अपेक्षा बंबई और मदरास का हाल अधिक चुरा है । यहाँ रैयतवारी बन्दोबस्त है और जमीन की मालगुजारी की शरह बहुत ही अधिक है। प्रोडोनल साहब बहुत घरसों तक इस देश में अच्छे अच्छे ओहदों पर थे । पटना में ये बहुत दिनों तक कलेकर थे ! कोई २५ वर्ष हुए आपने बंबई प्रान्त की मालगुजारी पर एक लेख लिया था। उसमें आप कहते हैं कि इस समय प्रजा को २३,२५,००,००० रुपया मालगुजारी का देना पड़ता है। पर अब वह २१ फी सदी बढ़ गई है अर्थात् काई २९,२५,००,००० रुपये हो गई है। बंबई की मालगुजारी के विषय में प्रोद्धोनल साहब ने, १८८० ईसवी में, पारलियामेंट में, बड़ा रौरा मचाया था। उनकी वातों की जांच के लिए एक कमीशन नियत किया गया था। इस कमीशन ने यहां खूब जाँच पड़ताल की। इसमें पांच मेंम्बर शामिल थे! दो वम्बई प्रान्त के भार. तीन पार पार प्रान्तों के । वंबई बालों ने भी मालगुजारी को शरह की अधिकता क़बूल की. पर उन्होंने गवर्नमेंट के पक्ष में भी कुछ कहा और प्रान्त वालों ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने बहुत ही दिल दहलाने चाळी रिपोर्ट लिखो और सप्रमाण साबित किया कि तीस वर्ष में तीस ही फ़ो सदी अधिक मालगुजारी प्रजा से उगाही गई ! उधर १८७७-७८ में अकाल के मारे अनन्त अनराशि मात के मुंह में फंस गई, इधर, उनकी आमदनी बढ़ाने की फ़िक्र तो दूर रही, सरकार ने उनसे सैकड़े पोछ तोस रुपये अधिक मालगुजारी ऐंठी ! इस दशा में, दरिद्रता के कारण, थोड़ा भी अकाल पड़ने से, यदि हज़ारों आदमी जान से हाथ धायें तो क्या आरचय !

मदरास का भी बुरा हाल है। मालगुजारी बढ़ती जाती है; काश्तकारों की जमीन नीलाम हाती जातो है : गरीबी के कारण थोड़ा भी अकाल पड़ने से हजारों आदमी मरते चले जाते हैं । मलावार जिले में तो ८४,८५ और १०५ फ़ी सदी तक मालगुज़ारो वसूल की जाती है ! मदरास में. १८५८-५९ ईस्वी में, ईस्ट इंडिया कम्पनी के बाद, अँगरेजी गवर्नमेंट का पहले पहल