पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३४
सम्पत्ति-शास्त्र।

६० फ़ी सदी से अधिक मालगुजारी नहीं ली जाती। पर कुछ ज़मीन ऐसी है जिसकी मालगुजारी ६५ फ़ी सदी के हिसाब से भी ली जाती है। यह क्यों ? इस लिए कि उतनी आसानी से वसूल हो जातो है ! सो यदि कोई काश्तकार या जमादार अपनी लाटा थालो बेंचकर किसी तरह मालगुजारी अदा कर दे तो उनसे ६५ फ़ी सदी तक के हिसाब से मालगुजारी ली जाय ! और उसमें यदि अन्यान्य कर जाड़ दिये जायें तो वह ७० फी सदी से भी ऊपर हो जाय !!! तिसपर भी मिस्टर आर० सी० दत्त के कथन के उत्तर में लार्ड कर्जन की गवर्नमेंट ने १६ जनवरी १९०२ को जो रेजोल्यूशन (मंतव्य) प्रकाशित किया, पार. जिसे पोछे से पुस्तकाकार भी छपाया, उसमें वह कहती है कि इस देश में प्रजा से जमीन की जो मालगुजारी लो जाती है वह अधिक नहीं है। उसे मजा आसानी से दे सकती है। शायद इसी से १८९१ पार ९०१ के बीच मध्य प्रदेश में कोई दस लाग्य से भी अधिक आदमी भूखों मर गये ! गत १९०१ की मनुष्य-गाना की रिपोर्ट यही कह रही है।

लन्दन के "इंडिया ऑफ़िस" की राय है कि अंगरेजी राज्य के पहले ज़मीन की जितनी मालगुजारी ली जाती है उससे अव फ़ी सदी १५ से लेकर ३० तक कम ली जाती है। जो कोई "सेक्रेटरी आवस्टेट" होता है उसे यही राय कंठ करादी जाती है। जब पारलियामेंट में कोई मैंबर मालगुजारी की ज़ियादनी की शिकायत करता है नत्र "सेक्रेटरी आव्स्टेट" या उनके नाय "अंडर सेक्रेटरी" तोन को तरह यही पाट पढ़ जाते हैं। १६ मई १९०७ को ओडोनल साहब के एक प्रश्न के उत्तर में "अंडर सेक्रेटरी" महोदय में निःसङ्कोच यही बात कहदी। परन्तु यह राय सरासर ग़लत है। इसमें कुछ भी सत्यांश नहीं। बंबई-प्रान्त में १७७१ ईसवी में पहले पहल अंगरेजी राज्य हुआ। उसके पहले यहाँ की मालगुजारी ८०,००,००० रुपये थी। परन्तु अंगरेजी शासन के दूसरे ही वर्ष वह ८० लाख की जगह एक करोड़ पन्द्रह लाख होगई ! इसके बाद वह किस तरह बढ़ती गई सो नीचे के हिसाब से मालूम होगा :--

२८२३ में १,५०,००,०००
१८५५ में २,८०,००,०००
१८७५ में ३,७०,००,०००
१८९५ मैं ४,८५,००,०००