पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१६

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भूमिका।


परिचय प्राप्त होता है। केवल स्वदेशी भापायें जाननेवालों के लिए इस शास्त्र का अच्छा ज्ञान होना प्रायः दुर्लभ है । सन्तोष की बात है। कुछ दिनों से लेागों का ध्यान इस शास्त्र की शिक्षा की ओर जाने लगा है। बंबई के शिक्षा विभाग के डाइरेकर ने इस शास्त्र की कुछ पुस्तक का अनुचाद मराठी में कराया है। पूना को दक्षिणी प्राइज कमिटी ने भी एक आध अँगरेज़ी पुस्तक का अनुवाद मराठी में कराकर अनुवादक का इनाम भी दिया है। पर आर प्रान्तों में संपत्तिशास्त्र-सम्बन्धी पुस्तके इस देश की भाप में लिखाने के लिए अधिकारियों, अथवा अन्य समर्थ अदमिये, अथवा सभा-समाज ने विशेप चेष्टा नहीं की। तिस पर भी उर्दू, बैंगला गार गुजराती भाषाओं में इस विषय को कई पुस्तके प्रकाशित हो गई हैं। रही पंनारी हिन्दी, से उसकी उन्नति की तरफ है। हमारे प्रान्तवासी सिलकुल हो उदासीन से हो रहे हैं। फिर उसमें सम्पत्तिशास्त्र-विषयक पुस्तकें लिखने और लिखने की चेष्टा कैसे है।

सम्पत्तिशास्त्र इतने महत्व का है कि इस पर पुस्तकें लिखना सब का काम नहीं । जिन्होंने इस शास्त्र का अच्छी तरह अँगरेजी में अध्ययन किया है, और जिन्होंने देश की सम्पत्तिक अवस्या पर अच्छी तरह विचार भी किया है, वही इस काम के अन्य समझे जा सकते हैं। हम इन गुणों से सर्वथा हीन हैं । इस विषय की पुस्तक लिखने की हममें कुछ भी योग्यता नहीं । यहाँ पर हमसे यह पूछा जा सकता है कि यदि यह बात है तै फ्यों तुमने इस पुस्तक के लिखने की धृष्टता की ?इसके उत्तर में इमारी यह निषेदन हैं कि हमारे इस चापल्य का कारा–“प्रकरणान्मन्दकरणं श्रेयः" लेाकेाक्ति में कहा गया सिद्धान्त है। जिनमें सम्पत्तिशास्त्र-घिपञ्चक अच्छी पुस्तक लिखनै कर सामथ्र्य है वे हिन्दी पढ़ना तक पाप समझते हैं , हिन्दी में पुस्तकें लिखने की बात से दूर रही। इस दशा में हमारे सदृश अयेग्य जन भी यदि अपने सामर्थ्य के अनुसार इस शास्त्र के स्थूल सिद्धान्त हिन्दी में लिखकर उनके प्रचार का यत्न करें तो कई दौप की बात नहीं। इसके लिए यदि किसी धा। दोप दिया जा सकता है तो उन्हीं के दिया जा सकता है जो इस शास्त्र का अच्छा शान रखकर भी उससे अपने देश-भाइयों के कुछ भी लाभ पहुचाने