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सम्पत्ति-शास्त्र।

ही अधिक क़ीमत मिलेगी मुनाफ़े की शरह भी उतनी ही अधिक होगी और क़ीमत जितनी ही कम होगी मुनाफ़े की शरह भी उतनी ही कम होगी। इसी तरह जितने समय में मुनाफ़ा मिलता है वह जितना ही कम होगा मुनाफ़े की शरह उतनीहीं अधिक होगी, और समय जितना ही अधिक होगा मुनाफ़े की शरह उतनहीं कम होगी। अतएव, इससे यह सिद्धान्त निकला कि किसी चीज़ के बनाने या तैयार करने में जो ख़र्च पड़ता है उससे, और जितने समय में कुल मुनाफ़ा मिलता है उस समय से, (दोनों से) मुनाफ़े की शरह का घनिष्ट सम्बन्ध हैं।

किसी किसी का यह ख़्याल है कि कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों वग़ैरह के लिए कारख़ानेदार को जो ख़र्च करना पड़ता है मुनाफ़े का सिर्फ़ उसी से सम्बन्ध है। अर्थात् मज़दूरी अधिक पड़ने से मुनाफ़ा कम हो जाती है और मज़दूरी का निर्ख़ कम होने से मुनाफ़ा अधिक मिलता है। अथवा, इसी बात को दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं कि कारख़ानेदारों और मज़दूरों में परस्पर हित-विरोध रहता हैं—एक की हानि से दूसरे को लाभ होता है। पर बात ठीक ऐसी नहीं है। मज़दूरी वग़ैरह में जो ख़र्च पड़ता है उससे और मुनाफ़े से घना सम्बन्ध तो है ही, पर साथ ही उसके समय से भी मुनाफ़े का सम्बन्ध है। मज़दूरी के निर्ख़ में कोई फेरफार न होने पर भी अगर कारख़ाने का माल जल्द बिक जायगा तो मुनाफ़ अधिक होगा और देर से बिकेगा तो कम।

कारख़ानेदारों का उत्पादनव्यय कई कारणों से कम हो सकता है। उनमें से ये तीन कारमा मुख्य है:—

(१) कम करने वालों के काम की मात्रा बढ़जाने पर उनकी मज़दूरी पूर्ववत् बनी रहने से।

(२) काम की मात्रा, और खाने पीने वग़ैरह की चीज़ों की क़ीमत, पूर्ववत् बनी रहने; पर काम करने वालों की मज़दूरी की शरह घट जाने से।

(३) खाने पीने की चीज़े सस्ती हो जाने से।

इन कारणों से यदि कारख़ानों का ख़र्च कम हो जाय तो मुनाफ़े की मात्रा बढ़ सकती है। हाँ यदि किसी स्वाभाविक या अस्वाभाविक कारण से काम करने वालों की शक्ति क्षीण होने से उनके काम की मात्रा कम हो जाय; अथवा यदि काम करने वालों की मज़दूरी का निर्ख़ बढ़ जाय,