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सम्पत्ति-शास्त्र।

यहीं करना चाहिए कि करख़ानेदार को निज की योग्यता और बुद्धिमानी ही अधिक मुनाफ़ा मिलने का सबसे बड़ा कारण है।

जैसे बुरी ज़मीन में अधिकाधिक खेती होने से उपजाऊ ज़मीन का लगान बढ़ता है उसी तरह अयोग्य कारख़ानेदारों की संख्या अधिक होने से योग्य और चतुर कारख़ानेदारों के मुनाफ़े की मात्रा भी बढ़ती है। सभ्यता और शिक्षा के प्रचार से मनुष्य की विद्या, बुद्धि और योग्यता बढ़ती हैं। उसका असर कारख़ानों के मालिकों पर भी पड़ता है। अतएव शिक्षा और कलाकौशल की वृद्धि के साथ साथ अयोग्य कारख़ानेदारों की संख्या कम होती जाता है और योग्य कारख़ानेदारों की बढ़ती जाती है। इससे मुनाफ़े की शरह दिनों दिन घटती है; क्योंकि अयोग्य कारख़ानेदारों की अधिकता ही के कारण उसकी मात्रा अधिक होती है। एक बात और भी है। वह यह कि शिक्षा और सभ्यता के प्रचार से मनुष्य दूरंदेश हो जाता है। इससे देश की पूँजी बढ़ती है। और पूँजी बढ़ने—उसकी आमदनी अधिक होने—से मुनाफ़े का परिमाण कम होना ही चाहिए।

पूर्वोक्त विवेयन से पहला सिद्धान्त यह निकला कि अधिक मुनाफ़े का मिलना बहुत करकै कारख़ानेदारों की निज की योग्यता पर अवलम्बित रहता है। और दूसरा यह कि शिक्षा, कला-कौशल और औद्योगिक ज्ञान की वृद्धि के साथ साथ मुनाफ़े की मात्रा कम हो जाती है। इसके साथ ही समय और ख़र्च की मात्रा का मुनाफ़े पर जो असर पड़ता है उसे भी याद रखना चाहिए। तत्सम्बन्धी सिद्धान्त भी अटल हैं।

इसी भाग के दूसरे परिच्छेद में कह आये हैं कि प्रजावृद्धि होने से अनाज का खप अधिक हो जाता है। इससे खेती की निकृष्टतर ज़मीन जोती बोई जाने लगती हैं। फल यह होता है कि उधर तो ज़मीन का लगान बढ़ जाता है और इधर महँगी के कारण कारख़ानेवालों का मुनाफ़ा कम हो जाता हैं। इस समय इस देश की जनसंख्या के बढ़ने, और लाखों मन अनाज विदेश जाने, से अनाज़ का खप बराबर बढ़ता ही जाता है। खप बढ़ने से उत्पादन-व्यय भी बढ़ता है। अर्थात् बहुत मेहनत करने और बहुत पूँजी लगाने से भी सम्पत्ति की यथेष्ट उत्पत्ति नहीं होती। जो कुछ होती है वह कई हिस्सों में बँट जाती है। उसी से लान, उसी से सूद, उसी से मज़दूरी और उसी से मुनाफ़ा निकालना पड़ता है। ज़मीन की मालिक