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सम्पत्ति-शास्त्र।

भी उन्हें आसानी से मोल ले सकें और देश को सम्पत्ति बहुत बढ़ जाय।

जुदा जुदा देशों और जुदा जुदा पेशों में मज़दूरोंकी नक़द उजरत तुल्य होकर भी असल उज़रत कमो-वेश हो सकता है। उदाहरण:—

(१) सब देशों में रुपये की क़ीमत या उसकी मोल लेने की शक्ति एकसी नहीं होती। बहुधा उसमें कमी-वेशी होती हैं। एक देश में एक रुपये की कोई चीज़ जितनी मिलती है, दूसरे देश में उससे कमोवेश मिल सकती है। कल्पना कोजिए कि हिन्दुस्तान में चार आने के तीन सेर गेहूँ बिकते हैं। संभव है, किसी और देश में चार आने के दोही सेर गेहूँ बिकने हों। यदि इन दोनों देशों में किसी मज़दूर की उजरत चार आने रोज़ हों तो, हिन्दुस्तान में चार आने के बदले तीन सेर गेहूँ मिलने के कारण, नक़ूद उजरत दोनों देशों में एक होने पर भी, हिन्दुस्तान के मज़दूर की असले उजरत अधिक होगी।

(२) किस किस देश में काम करने वालों को रहने के लिए मकान मिलता है, दोपहर का खाना मिलना है, ईधन लकड़ी भी मिलती है। अतएव जिन देशों में यह रिवाज नहीं है वहाँ के मज़दूरों की मज़दूरी का निर्ख़, यहाँवालों के निर्ख़ के बराबर होने पर भी, असल उजरत में बहुत अन्तर होगा। जिस देश के मज़दूरों को मकान आदि मुफ़त में मिलेगा उनकी असल उज़रत अधिक पड़ जायगी।

(३) कुछ पेशे ऐसे हैं जिनमें लगे हुए लोगों को काम में अपने स्त्री और बच्चों से भी मदद मिलती है, पर कुछ में नहीं मिलती। इस दशा में जिन लागेां की मदद मिलेगी उनकी असल उजरत दूसरों की अपेक्षा ज़रूर ही अधिक होगी।

संभव है कि कारख़ानेदार को नक़्द उजरत अधिक देनी पड़े; पर, मज़दूरों या कारीगरों की कुशलता और कारीगरी के कारण, असल उजरत कम हो। इसके विपरीत, सम्भव है, कारख़ानेदार नक़्द उजरत इतनी कम दे जिससे कारीगरों का गुजारा मुश्किल से हो सके। पर कारीगरों की सुस्ती, बेपरवाही और अयोग्यता के कारण उनकी तैयार की हुई चीज़ों की बिकी से करख़ानेदार को जो कुछ मिले वह उनके दी हुई उज़रत के बराबर भी न हो। चतुर मोची एक टुकड़े चमड़े के चार जोड़ी जूते तैयार कर सकता है। पर जो अपने काम में निपुण नहीं है वह मुश्किल से तीन जोड़े