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मज़दूरी।

हैं उनकी वहाँ बड़ोही वे इज्ज़ती होती है। इससे यहाँ वालों का देशान्तरवासचिंपयक साहस और भी कम हो गया है। इस देश में कहीं कहीं, किसी किसी प्रान्त में, आवादीं कम है। वहाँ लोग जाकर बसें तेा बहुत अच्छा हो।

आबादी की वृद्धि रोकने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि यथाशक्ति "कृत्रिम निरोध" से काम लिया जाय। पर इस तरह के विरोध में कोई बात अविवेकपूर्ण न होनी चाहिए। जो उपाय किया जाय विवेकपूर्वक किया जाय। अशिक्षित और मुर्ख मज़दूरों में विवेक का होना बहुत कम सम्भव है। शिक्षा से उनकी दशा सुधर सकती है। क्योंकि उनकी कार्यकुशलता बढ़ जाती है। इससे उनका काम अधिक उत्पादक हो जाता है, और निगरानी और औज़ार वगै़रह का ख़र्च भी कम हो जाता है। फल यह होता है कि अधिक सम्पत्ति पैदा होती है और उन्हें अधिक उजरत मिलने लगती है। यदि उन्हें शिक्षा मिले, और शिक्षा के योग से उनकी आमदनी भी कुछ बढ़ जाय, तो उन्हें अपनी स्थिति को उन्नत करने की ज़रुर ख़याल होगा। उस समय जीवन-निर्वाह की उच्च कल्पनायें आपही आप उनके मन में आने लगेगी। अतएव वें अपनी उस स्थिति से नीचे न गिरेंगे और विवेकजन्य निरोध आदि से अपनी सन्तति को भी बहुत न बहने देंगे।

आबादी के बढ़ने और मज़दूरी के निर्ख़ से बहुत बड़ा सम्बन्ध है। इसीसे मनुष्य-संख्या की वृद्धि के सम्बन्ध में यहाँ पर कुछ विचार करना ज़रूरी समझा गया। जिस परिमाण में मनुष्यों की संख्या कम या अधिक होती है उसी परिमाण में मज़दूरी का निर्ख़ भी अधिक या कम होता है। आबादी बढ़ने से दो बातें होती हैं। चल पूँजी के बहुत आदमियों में बँट जाने से एक तो हर आदमी—हर मज़दूर—का हिस्सा कम हो जाता हैं। अर्थात् उजरत की शरह घट जाती है। दूसरे खप अधिक होने से खाने पीने की चीज़ें महँगी हो जाती हैं। मज़दूरी भी कम, अनाज भी महँगा! इससे बेचारे मज़दूरों को पेंट भर रोटी नहीं मिलती। उनकी इशा दिन पर दिन हीन होती जाती है। हमारा देश ऐसा दरिद्री कि पूँजी बहुत कम; सो भी विशेष बढ़ती नहीं। आबादी बढ़ रही है। प्लेग की कृपा से कुछ कम ज़रूर हुई है; पर गत दस वर्ष का औसत लगाने से फिर भी पहले से अधिक ही हैं। अतएव मेहनत मज़दूरी करके पेट पालनेवालों को अवस्था के अधिकाधिक नाज़ुक है। जाने का सब सामान यहाँ प्रस्तुत है।