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सम्पत्ति-शास्त्र।


पदार्थों की क़ीमत बढ़ जाने से मज़दूरों की मज़दूरी नहीं बढ़ती और यदि बढ़ती भी है तो थोड़े ही समय के बाद वह फिर उतर जाती है। किसी चीज़ की क़ीमत उसके उत्पादन-व्यय के अनुसार निश्चित होती है। और उत्पादन-व्यय में सूद, मुनाफ़ा, मज़दूरी, जोखिम का बदला, निगरानी का ख़र्च और सरकारी कर आदि कितनीहीं बातें शामिल रहती हैं। इनमें से किसी एक का भी परिमाण अधिक होने से क़ीमत अधिक हो सकती है। संभव है, मज़दूरी पूर्ववत् ही बनी रहे; पर उत्पादन व्यय की किसी और शाखा का परिमाणा अधिक हो जाने से पदार्थों क़ी क़ीमत बढ़ जाय। अतएव यह न समझना चाहिए कि क़ीमत बढ़ने से मज़दूरों को उजरत भी हमेशा अधिक मिलती है। उनका उजरत तो तभी अधिक मिलेगी जब उनकी संख्या पूर्ववत् बनी रहकर चल पूँजी अधिक हो जायगी; अथवा पूँजी पूर्ववत् बनी रह कर उनकी संख्या कम हो जायगी; अथवा कार्य्य-कुशलता के कारण उनकी मदद से अधिक सम्पत्ति उत्पन्न होगी।

किसी चीज़ की क़ीमत बढ़ने से उसे बनाने या तैयार करनेवाले मज़- दूरों को उजरत यदि बढ़ेगी भी तो कुछ समय बाद वह फिर अपने पहले ठिकाने पर आजायगी। कल्पना कीजिए कि आज कल स्वदेशी कपड़े का बड़ा खप है। इससे उसकी क़ीमत अधिक आती है और मुनाफ़ा बहुत होता है। यह देखकर जो लोग स्वदेशी कपड़े का व्यापार या व्यवसाय नहीं करते थे वे भी अपना अपना व्यवसाय बन्द करके कपड़े के कारखाने खोलेंगे। इससे इस व्यवसाय की पूँजी बढ़ जायगी। पर कपड़े के पुतलोघरों में काम करनेवाले मज़दूरों की संख्या पूर्ववत् ही रहेगी। अतएव उनकी उजरत ज़रूर बढ़ आयगी। पर इस व्यवसाय में बहुत आदमियों के लग जाने से माल अधिक तैयार होगा। उधर और कारख़ानों के बन्द होने से जो मज़दूर बेकार हो जायँगे वे भी कपड़े के कारख़ानों में घुसने लगेंगे। परिणाम यह होगा कि उजरत का निर्ख़ उतरने लगेगा और धीरे धीरे पूँजी और मज़दूरों की संख्या के समीकरण पर निश्चित हो जायगा। संभव है, इस समय वह पहले की अपेक्षा भी कम हो जाय। अतएव पदार्थों की क़ीमत का बढ़ना इस बात का पक्का प्रमाण नहीं कि उससे मज़दूरों की उजरत भी बढ़ती है और यदि बढ़ती है तो हमेशा वही बनी रहती है।

जैसा ऊपर कहा गया है, मज़दूरी का निर्ख़ उद्योगी मज़दूरों की चढ़ा-