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मज़दूरी।

ऊपरी से भी निश्चित होता है। अतएव निरुद्योगी और आलसी आदमियों का, बिना उनसे कोई काम लियेही पालन-पोषण करना देश में निरुद्योग और आलस्य को बढ़ाना है। उद्योग और श्रम से ही सम्पत्ति पैदा होती है। इससे जो लोग श्रम नहीं करते, मुफ़्त में औरों का दिया खाकर पैर पर पैर रक्खे हुए बैठे रहते हैं, वे देश के दुश्मन हैं। क्योंकि उनका निरुद्योगीपन देश की सम्पत्ति कम करने का कारण होता है। उन्हें खिलाने पिलाने में जो ख़र्च होता है उसका कुछ भी बदला नहीं मिलता। उसे निरुत्पादक व्यय समझना चाहिए। फिर बहुत आदमियों के कोई उद्योग न करने से काम करनेवाले मज़दूरों की संख्या कम हो जाती है। इससे मज़दूरी का निर्ख़ बढ़ जाता है और देश की पूँजी का अधिकांश मज़दूरी ही में ख़र्च हो जाता है। मज़दूरी बढ़ने से सब चीज़ें महँगी हो जाती हैं। इसका असर मज़दूरों पर भी पड़ता है। फल यह होता है कि मज़दूरी बढ़ने से उन्हें जो लाभ होना चाहिए, वह महँगी के कारण नहीं होता। अतएव आलसी और निरुद्योगी आदमियों की संख्या बढ़ाना देश के लिए और ख़ुद मज़दूरों के लिए भी, सम्पत्ति-शास्त्र की दृष्टि से बहुत बुरा है।

व्यवसाय एक नहीं अनेक हैं। उन सब में मज़दूरी, उजरत या वेतन का निर्ख़ एक नहीं। किसी व्यवसाय में कम उजरत मिलती है किसी में अधिक। सम्पत्तिशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्य्य ऐडम स्मिथ ने वेतन की कमी वेशी के सम्बन्ध में व्यवसायों के पाँच वर्ग माने हैं। यथा:—

(१) कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिन्हें लोग पसन्द करते हैं और कुछ ऐसे हैं जिन्हें नहीं पसन्द करते। कोयले की खान में कुली का, या रेल के यँजिनों पर ख़लासी का, काम करने वालों के बदन कोयले और तेल से लिपटे रहते हैं, मेहनत भी बहुत पड़ती है, जान जाने का भी डर रहता है। इससे इस काम के लिए बहुत कम आदमी मिलते हैं और जो मिलते हैं उन्हें अधिक उजरत देनी पड़ती है। इसी तरह जो काम समाज की दृष्टि में निंद्य और अप्रतिष्ठाजनक समझे जाते हैं, उनके करने वालों को भी अधिक उजरत मिलती है। अमीर आदमियों के रसोइये और साहब लोगों के ख़ानसामें पन्द्रह पन्द्रह बीस बीस रुपया महीना पैदा करते हैं। पर देहाती मदरसों के मुदर्रिस मुश्किल से दस बारह रुपये वेतन पाते हैं। इस का यही कारण है कि लड़के पढ़ाने में प्रतिष्ठा है। पर खाना पकाने में नहीं। ऐडम स्मिथ के इस