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मज़दूरी।


(५) कुछ व्यवसाय ऐसे हैं जिन में यह शड़्का बनी रहती है कि इस काम में सफलता होगी या नहीं। रेल में हज़ारों तार बाबू दरकार होते हैं। तार का काम जानने वाले बहुधा कभी बेकार नहीं रहते। उन्हें कहीं न कहीं काम मिल ही जाता है। सफलता-सम्बन्धी इसी निश्चय के कारण उन्हें कम तनख्वाह मिलती है। पर वकीलों को अपने व्यवसाय में सफलता की शङ्का रहती है। क्योंकि किसी की विकालत चलती है, किसी की नहीं चलती। यही हाल उच्च प्रकार के काम करने वाले और लोगों का भी है। इसी से उन्हें अधिक उजरत मिलती है।

परन्तु इस वर्गीकरण में भी मज़दूरी की कमी देशी चल पूँजी के परिमाग और काम करने वालों की संख्या और कार्यकुशलना पर अवलम्बित रहती है। चाहे जो व्यवसाय हो और चाहे वह जितना कठिन हो, काम करने वालों की संख्या का असर मज़दूरी पर जरूर पड़ना है। यही हाल अधिक ख़र्च से सीखे जाने वाले और अधिक ज़िम्मेदारी के कामों का भी है। जब तक मज़दूरों की संख्या कम है तभी तक उजरत अधिक मिल सकती है। उनकी संख्या बढ़ने से उजरत ज़रूर घट जाती है। प्रफुलचित, वलिष्ट, नीरोग, विश्वासपात्र, कार्य्यकुशल और दूसरे के काम को अपना समझ कर मेहनत करने वाले लोगों को कभी काम की कमी नहीं रहती। उन्हें उजरत भी अधिक मिलती है और जिनका वे काम करते हैं उन्हें उनकी बदौलत लाभ भी अधिक होता है।