पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१९५

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१७६ सम्पत्ति-शास्त्र । सार' होता है कि उसके पैदा करनेवालों में से किसी किसी के बहुत नुक़• सान उठाना पड़ता है। इसी तरह कभी कभी ऐसे कार उपस्थित हो जाते हैं कि सम्मत्ति की उत्पत्ति रुक जाती है, या बहुत कम हो जाती है । उदाहरण के लिए, कड़ा महसूल लग जाने से माल की रफ्तनी बन्द हो जाती है। इससे बड़े बड़े कारखाने धूल में मिल जाते हैं। देश का व्यापार मारा जाता है। कारीगर और श्रमजीधी चुच्चों मरने लगते हैं। पैसेही ऐसे अनेक कारणों से सम्पत्ति घटा बढ़ा करती है। कैई देश सम्पत्तिमान् होता चला जाता है, केई कंगाल ! कभी कभी प्राकृतिक कारणों से भी देशों की सम्पचि घट बढ़ जाती है। यदि किसी ज्वालामुखी के स्फोट से कई देश या देशांश बरबाद हो जाय; था तूफ़ान से उसके जहाज़ डूब जाएँ;फसलें नष्ट हो जाएँ, या अकस्मात् अगि छगने से बड़े बड़े शहर जल जाएँ, तो इन आपदाओं से जो सम्पति-नाश होगा उसका कारण प्राकृतिक माना जायगा। इसी तरह यदि अचानक सोने, चाँदी, लौहै, कैयलै अदि की खानों को पता किसी देश में लग जाय और उनसे ये चीजें खून निकलने लगे तो देश फी सम्पत्ति अरूर बहू' जायगी । इस सम्पत्ति-वृद्धि के कारण के भी प्राकृतिक ही' फगे । | जितने देश हैं सम्पत्ति पैदा करने की शक्ति सत्र की शुदा जुदा हैं । यही नहीं, किन्तु प्रत्येक देश की शक्ति समय समय पर बदला करती है । इतिहास में इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि एकही देश की सम्पत्ति का परिमाण भिन्न भिन्न समय में भिन्न भिन्न रहा है । जिस समय जिस देश की जैसी अवस्था होती है उस समय उतनीहौं सम्पत्ति वह पैदा होती है । अपनेही देश के देखिए । सौ वर्ष पहले इसमें जितनी सम्पत्ति उत्पन्न करने की शक्ति थी, इस समय उतनी नहीं रह गई। शिक्षा से भी सम्पत्ति की उत्पत्ति अढ़ जाती है। जिस देश के लोग शिक्षित हैं, उद्योग-धन्धा करना जानते हैं, दस्तकारी के कामों में निपुण हैं वहां अधिक सम्पत्ति उत्पन्न होती है। यदि दे। देश एकहीं राजा के अधीन हों, और प्राकृतिक अवस्था भी दौनों की एकही सी हो, तो भी सम्पत्ति के उत्पादन में प्रशिक्षित देश कभी शिक्षित की बराबरी न कर सकेगा । प्रारूतिक पदार्थों का जितना अच्छा उपयोग शिक्षित दम कर सकेंगे, अशिक्षित कभी न कर सकेंगे । जो चीज़ जमीन के पेट में भरी पड़ी हैं उनका शान,