पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१९६

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सर्वसाधारण बातें। १ अशिक्षितों के नहीं हो सकता । और यदि हो भी तो मैं उनसे यथेष्ट लाभ नहीं उठा सकने । शिक्षा, विद्या र विज्ञान के वल से एक वीथे जमीन में जिननी गदावार हो सकती है उतनी अशिक्षित आदमियों के किये कभी नहीं हो सकती । जिस देश में खनिज, रसायन, ऋषि, भूगर्भ आदि विद्याओं के जानने वाले हैं वह देश उन देशों से जूझरही अधिक सम्पत्ति उत्पन्न कर सकैग्स जा इन विद्याओं के नहीं जानते । कला-कौशल के विषय में भी यहीं सात कही जा सकती है। किसी किसी देश के रहनेवाले सम्पत्ति की कम परवा करते हैं। यह बात पूर्वी देशों में अधिकतर पाई जाती है । हिन्दुस्तानी की लीजिए: यहां इम लोग सन्तोष की एक बहुतही श्रेष्ठ गुण समझते हैं, और, भाग्य के भरोले कर जो कुछ मुबह से शाम तक मिल जाता है, उसी पर खुशी से गुज़ारा करते हैं। यहां की धार्मिक शिक्षाहो कुछ इस तरह की है । इसीसे तो यह कहावत अकसर लोगों के मुंह से सुनने में आती हैं :| आज ग्वाय और कल के झक्सै-उसको गोरग्य संग न पर्छ । पश्चिमी देशों का हाल इसका उलटा है। वे तक़दीर से सदर का श्रेष्ठ समझते हैं और हमेशा सम्पत्ति के बढ़ाने की किफ में रहते हैं । सन्तोष ॐा में बुरी दृष्टि से देते हैं। छोटे से लेकर बड़े तक सच कर किसी न किसी तरह का हौसिला रहता ही हैं। सन्तोष किसी के किसी बात से नहीं । पूर्वी र पश्चिमी देशों में सम्पत्ति-विषयक यह बात ध्यान में रखने लायक़ है। मज़दूरों और हर पेशे के कारीगरों के चुस्त, चालाक और दिक्षित होने से भी ट्रैश की सम्पत्ति बढ़ती है। जहां के कारीगर अच्छा काम कर सकते हैं और पढ़े लिखे होते हैं, जहां के मज़दूर खूब मजबूत होने हैं और शराबी कधाचीं नहीं होने, यह देश औरों की अपेक्षा अधिक सम्पत्तिमान् होता है । जिस देश के श्रमजीवी सुस्त, अपह, कमज़ोर घर फर्म समझ होते हैं वह देश बहुत कम सम्पत्ति पैदा कर सकता है। दूरदेश और ईमानदार कारीगरों से देश को जितना लाभ पहुँचता हैं फम समझ, काहिल और कामचौर कारीगरों से उतनीहो हानि पहुँचती है ! श्रमजीवी आदमियों को यह शिक्षा देना कि विश्वासपात्र, चालाक और दूरदेश बनने से उन्हीं को नहीं, किन्तु सारे देश को लाभ पहुँच सकता है, देश के सभी शुभ