पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१९७

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१७८ सम्पत्ति-शास्त्र। चिन्तकों का कर्तव्य है। यदि यह शिक्षा इन लोगों के दिलों पर असरं कर जाय और ये काहिली आदि दोप छोड़ दें तो वहुत जल्द देश में सम्पत्ति की वृद्धि होने लगे । जो कारीगर, जौ दस्तकार, जो मजदुर सम्पत्ति के अबरोधक दोपों को नहीं छोड़ते वे अपने ही नहीं, अपनी जाति और अपने देश के भी दुश्मन हैं। अगर, जो लोग उनके बुरी आदते छोड़ने की शिक्षा देने के योग्य हो कर भी नहीं देते, मैं भी मान अपनी, अपनी जाति की और अपने देश की भलाई की जड़ काटते हैं। जिस बैंक में वाणिज्य-व्यवसाय अधिक होता है और थोड़ी थोड़ी पूँजी एकट्टी करके बड़े बड़े कारोबार किये जाते हैं वह देश औरों की अपेक्षा अधिक सम्पत्तिशाली हो जाता है । जिस देश में पूँजी फ कमी है उसके लिए तो कम्पनियां खड़ी कर के व्यवसाय करने की बड़ी ही जरूरत है। अधिदी न्त्रहने से भी देश की सम्पत्ति कम हो जाती है। यदि लड़ाइयों स्वार हैजा, लेग अादि रोगों से अबादी कम न होती जाय तो तीस ही वर्ष में चह हनी ६ जाय | इस दशा में जीवन-जंजाल का भागड़ा टूना बढ़ जायगा और एक की जगह दी खाने वाले हो जायेंगे । चादी बढ़ने से जमीन अपनी उत्पादक शक्ति की अन्तिम सीमा तक जल्द पहुँच जाती है । फ्योंकि लाने को सुना चाहिए । इसे लिप लाग जी जान से मेहनत कर के उसकी शक्ति को बढ़ाते हैं । पर चढ़ती है वह अपनों हद ही तर्क । इधर आजादी की हद नहीं । वह बढ़ती ही रहती हैं। इससे देश की सम्पत्ति सौरा है।ने लगती है । यदि ऐसी अवस्था में कुछ लैग देशान्तर न कर जायें, या प्राकृतिक कारणों से अवादी कम न है। जाय, ते देश की आर्थिक दशा बहुत नाजुक होने से नहीं बच सकती है। समत्ति के बटने बढ़ने के के कारण हैं उनमें से कुछ ऐसे हैं जो शास्त्रीय-सिद्धान्त के अधीन हैं। अर्थात् उन फार से हुई सम्पत्ति की न्यूनाधिकंती शास्त्रीय नियमों का अनुसरण करती है । पर कुछ कारण ऐसे हैं जिनके नियम हूंढ निकालना बहुत मुशकिल है। सम्पतिशास्त्रबिपथक अँगरेज़ी की बड़ी बड़ी किताबों में इन बातों का सविस्तर विचार किया गया है। उसके लिए इस छोटी सी पुस्तक में जगह नहीं।