पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/१९९

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१८० सम्पत्ति-शास्त्र । का कर लगाकर वह कहीं कहीं ६५ फ्री सदी से भी अधिक हो जाती है । इसका फल यह होता है कि काश्तकारों की बहुत ही कम क्या, किसी किसी का प्रायः कुछ भी नहीं बचता और उनकी ज़मीन नीलाम हो जाती है। यहां के वाणिज्य-व्यवसाय की भी बुरी दशा और कृयी फी भी। यही दो मर्दै देश की सम्पत्ति बढ़ानेवाली हैं । सो दोनों की दुर्दशा हैं। इस भूमण्डल का केाई देश, फिर चाहे वह कैसा ही सम्पत्तिमान क्यों न हो, इस दशा में कभी उन्नत नहीं हो सकता । साठ साठ फ्री सदी के हिसाब से कृपों की पैदावार को काश्तकारों में लेने पर काई देश धरनाद होने से नहीं बच सकतई । इस देश की आर्थिक अवनति का एक कारण यह भी है कि विदेशी राज्य होने के कारण विदेशी अधिकारी और विदेशी फ़ौज रखने तथा विदेशी सामान खरीदने में बेअन्दाज़ सम्पत्ति खर्च होती हैं। फिर यह ख़र्च हुई सम्पत्ति यहीं नहीं रहतीं । इँगलंड चली जाती है। और भारत उससे हमेशा के लिए हाथ धो वैठती है। हिंदुस्तान के खर्च खाते इंगलैंड में हर साल कोई २० करोड़ रुपया लिखा जाता है । यह सत्र हिन्दुस्तान केा देना पड़ता हैं। प्रज्ञा से गवर्नमेंट जो मालगुजारी घसूल करती हैं उसका एक चतुर्थांश विलायत जाता है । जो अँगरेज इस देश में सरकारी नौकरी करते हैं हैं जो द्रव्य अपने देश की, अपनी तनवाह से वो कर, भेजते हैं वह यदि इसे हिसाब में जोड़ लिया जाय तो इस देश से विलायत जानेवाली सम्पत्ति का परिमाण और भी अधिक हो जाय । हर साल इसी तरह इस देश की सम्पत्ति की धारा बिलायत को बहती है और इस देश फी दरिद्रता बढ़ाने का कारण होती हैं । इस सम्पत्ति का कई वदल हिन्दुस्तान की नहीं मिलता। इस दशा में यदि भारत की भूमि सुवर्णमय हो जाय तो भी किसी दिन यह देश कंगाल हुए बिना न रहे। चिलायत में हर आदमी की सालाना आमदनी का औसतं केाई ६०० रुपया है और हिन्दुस्तान में हर आदमो का सिर्फ ३० रुपया ! इस पर भी विलायतवाले होम चार्जज़' के नाम से यहां के ही आदमी से औसतन् ७६ रुपया वसूल करके अपने देश के ले जाते हैं। फिर भला श्यों न यह देश दिनों दिन दरिद्रता की फाँस में हँसता काय ?