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हिन्दुस्तान की आर्थिक अवस्था का दिग्दर्शन।
यहां की सम्पत्तिक अवस्था अच्छी न होने का सबसे बड़ा सबूत यह है झि गवर्नमेंट का असर करोड़ों रुपयी क्लर्ज लेना पड़ता है। इस समय कई अरब रुपये क़ॐ हिन्दुस्तान के सिर पर है। उस पर जैश सूद सरकार की दैना पता है इससे यही का पहले ही से बढ़ा हुआ ख़र्च और भी बढ़ जाता है।

हम लोगों की रग रग में पुरानापन चुसा हुआ है। पुरानी आदतें हमारी झुटताही नहीं । उही पुराना चर्चा और वही पुराना हुल अन तक चल रहा है । यहां की ज़मीन और अबोहवा ऐसी है कि कच्चा चाना यहाँ बहुत पैदा होता है । मजदूर जितने चाहो मिल सकते हैं; और मजदूरी भी सस्ती है । पर मज़दूर न तो चुस्त और चालाकी हैं और न कामही अच्छा करना जानते हैं । मज़दूरों से मतलव कुलिर्यों से नहीं, किन्तु हाथ से काम करने घाले जितनै श्रमजीवी हैं सबसे हैं। जी बहुत कम हैं । जितनी है भी उसका अधिकांश लैवर या मामिसरी नोट आदि के रूप में पड़ा हुआ है। उससे काई उद्योग-धन्धा किया ही नहीं जाता। फिर पूँजीघा से तंगदिळ आदमी है कि व्यापार-व्यवसाय में रुपया लागने का उन्हें साहसी नहीं हौता । वे डरते हैं कि कहीं हमारा रुपया इस न जाय । सम्भूय-समुत्थान का तो नामहीं न लीजिए । कम्यनियां खड़ी करके व घट्टै व्यवसाय करना यहां बालों के मालूमही नहीं । सच लोगों की जीविका प्रायः खेती से चलली है । सी खेती की यह दशा है कि जमीन के उर्धरा बनाने–असकी उत्पादकशक्ति बढ़ाने की उत्तम तरकीबें लोगों के न मालूम होने से उसकी पैदावार कम होती जाती है। फिर किसी साल पानी बरसता है, किसी साल नहीं वरसता है जिस साल जहाँ नहीं बरसता वहां कुछ नहीं चैदा हौला । कलकत्ते, बंबई और कानपुर आदि में जो बड़े बड़े कारखाने हैं वे अभी कल के हैं। बड़े बड़े व्यापारी भी बहुत कम हैं । ऐसे कुछड़ी व्यापारी होंगे जिनके जहाज़ चलते हैं। जितने व्यापार और उद्यम-धन्धे हैं सब थोड़ी पूँजी से चलते हैं । ज़मीन पर प्रज्ञा का केाई हक़ नहीं, गवर्नमेंट कहती हैं वह हमारी हैं। सञ्चय करना लोग जानते नी । अभी सौ सवा सौ वर्ष पहले हुक तो किसी के जान-माल तक का ठिकाना न था । सन्चय लोग लुटेरों के लिए थोड़ेही करते ! इ अब अंगरेजी राज्य की बदौलत अमन चैन हैं। इससे कुछ सञ्चय होने लगा हैं। धार्मिक ख़याल लोगों के कुछ ऐसे हो रहे हैं कि सम्पत्ति धुरीचीज़समझी जाती है। वह न हो सोई बेहतर ।