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हिन्दुस्तान की आर्थिक अवस्था का दिग्दर्शन।

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 लिए अबाध वाणिज्य की ज़रूरत समझता है। क्या अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और खुद अंगरेजेंही का उपनिवेश आस्ट्रेलिया आदि देश मूर्ख हैं जो अबधि वाणिज्य के खिलाफ़ हैं? नहों , वे बड़े दुरन्देश और बड़े स्वदेशहित-चिन्तक हैं । इसीसे वे व्यापार-विपयक लरक्षण" के पक्षपाती हैं। अँगरेज़-अधिकारी भी इस बात को समझते हैं। पर' चे करें क्या? उन्हें ,खुद अपने देश के अपने घर के, अपनी जाति के व्यवसायियों और व्यापारियों का भी ख़याल हैं। यदि उनके तैयार किये हुए माल पर कर लगा दिया जायगा तो उनके मुंह की रोटी छिन जायगी ! उनके कारखाने बन्द पड़ जायेंगे । इंगलैंड में हाहाकार मच जायगा । अतएव अंगरेज-व्यापारियों की हानि पहुँचा कर हिन्दुस्तान का भला गवर्नमेंट कैसे कर सकती है। इसके लिए गवर्नमेंट विशेष देा भी नहीं, क्योंकि--* अञ्चल खेश, चादहू दरवेश' ।। | हिन्दुस्तान के कुछ प्रान्त ऐसे हैं जो घेतरहू थने घसे हुए हैं। वहां बीघे भर भी परती ज़मीन न मिलेग । पर मध्य भारत में कई रियासते ऐसी हैं जहाँ लाख वीमें अच्छी ज़मीन याही पड़ी हुई हैं। कई जोतने मैंने घाला ही नहीं। ऐसे और भी कई प्रान्त हैं जहां ज़मीन बहुत है, पर उसे जीतने वाले कम ! यदि लोग ऐसी ऐसी जगहों में जाकर आवाद हो तैः सम्पत्ति की वृद्धि हुए विना न रहे । नौ-आबाद आदमियों की आर्थिक अवस्थी बहुत कुछ सुधर जय । पंजाव के कुछ जिलों में गवर्नमेंट ने जो उपनिवेश-स्थापना शुरू कर दी हैं उसके कारण हज़ारों बीघे परती ज़मीन उपयोग में आ गई हैं और कितने ही नये नये गांव वाद हो गये हैं। यदि गवर्नमेंट अन्यत्र भी ऐसा ही करे, और यहां की देशी रियासतें भी गवर्नमेंट का अनुकरण करें, तो देश को बड़ा उपकार है । | राजा जी कर प्रजा नै लेता है वह प्रजा ही की रक्षा के लिए--प्रजा ही के लाभ के लिए लेता है। प्रजा के अर्थकरी शिक्षा देना भी रजा ही का काम है । पर औद्योगिक कला-कौशल सम्बन्धी शिक्षा देने का गवर्नमेंट ने आज तक इस देश में कुछ भी प्रबन्ध नहीं किया। जो कुछ किया भी है घह न करने के बराबर है। जिस जाति को जिस देश को-इस सभ्यता और व्यापार-चिपयक चढ़ा ऊपरी के जमाने में ग्रौद्योगिक शिक्षा नहीं। मिलती उसकी आर्थिक दशा कभी उन्नत नहीं हो सकती । जिस देश के लोग दृस्यिवृत्ति करके पेट भरलैनी हाँ शिक्षा का एक मात्र उद्देश समझते